जो यकीन की बाज़ार कीमत
लगाये जाते हैं,
वफादारी की कसमें खाते हैं रोज
पर किसी से निभाई हो
इसका सबूत नहीं देते
क्या वह रिश्ता निभायेंगे
प्यार और दोस्ती का
जो पहले अपनी जरूरत पूरी करने का
शोर मचाये जाते हैं।
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इस दुनियां में रिश्तों का
मतलब इतना ही रह गया है कि
खुद निभा सको तो निभाओ,
वरना अपने हों या गैर
सारे रिश्ते समय के साथ भूल जाओ।
अपने ऊपर बेवफाई का आरोप न आने देना
रिश्तों का नाम भी रहते लेना
मगर अरमानों का अपना आसमान
उनसे बहुत दूर लगाओ।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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1 comment:
आज के युग मे रिश्तों के खोखलेपण को दर्शाते विचार
अच्छी रचना |
आशा
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