इधर केंद्रीय बोर्ड की परीक्षा का प्रश्न पत्र खुलेआम बिकने की खबर है और उधर जंतर मंतर पर देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध जुलूस निकाल कर प्रदर्शन करने की भी चर्चा है। ऐसा लगता है कि यह प्रदर्शन शाम को होगा जिसमें मोमबत्तियां भी जलाई जायेंगी। ऐसे में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का का अब तक बूंद भर प्रभाव न होने के लक्षण भी प्रकट हो रहे हैं। जो जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने वाले हैं वह अन्ना हजारे साहब के ही समर्थक हैं ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या वह लोग अपने आंदोलन का परिणाम निकालने का सामर्थ्य रखते हैं या केवल प्रदर्शन कर प्रचार पाना ही उनका लक्ष्य हैं। अन्ना हजारे साहिब और उनके समर्थक दो अलग अलग धाराओं में स्थित हैं। ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनकारियों ने केवल उनका चेहरा उपयोग में केवल प्रचार पाने के लिये किया है। यहां अब अन्ना साहिब की ईमानदारी नहीं बल्कि उनके समर्थक शीर्ष पुरुषों की क्षमता पर सवाल उठाया जा रहा है।
जब अन्ना साहिब का एजेंडा मान लिया गया तब देश में उनके समर्थकों ने मोमबतियां जलाकर जश्न बनाया जिससे न आम लोगों में न केवल शिक्षित बल्कि अशिक्षित लोग भी आश्चर्यचकित रह गये थे। देश का हर आम और खास आदमी जानता है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी जानी है और मोमबतियां जलाना केवल आत्ममुग्धता की स्थिति है।
कुछ लोगों को लगता है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन भी बाज़ार के सौदागरों से प्रायोजित और उनके प्रचार प्रबंधकों से संरक्षित है। आखिर जो बाज़ार इस भ्रष्टाचार का लाभ उठा रहा है वह क्यों भ्रष्टाचार को प्रायोजित करेगा?
इसका उत्तर प्रमाणिक नहीं है पर अनुमानित होने के साथ विचारणीय भीे है। दरअसल विश्व में बाज़ार, अपराध तथा प्रचार जगत के शिखर पुरुषों का का एक गिरोह बन गया लगता है। मुश्किल यह है कि हर संगठन पर उनका वर्चस्व है। ऐसे में कुछ संगठन तथा व्यक्त्तियों की छवि साफ सुथरी बनाये रखना उनके लिये जरूरी है क्योंकि उनके बिना यह गिरोह विश्व समाज पर अपना नियंत्रण स्थापित नहीं सकता है। समाज पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये साफ सुथरी छवि वाले लोग तथा पवित्र लगने वाले संगठनों का होना आवश्यक है। भले लोग साफ सुथरे न हो या संगठन पवित्र न हो पर उनकी छवि ऐसी होना आवश्यक है जिससे लोगों का व्यवस्था में विश्वास बना रहे।
पहले पुण्यात्मा लोग कहते थे कि इस संसार में पाप पूरी तरह मिट नहीं सकता क्योंकि उससे ही पुण्य की पहचान होती है। उसी तरह अब पापात्मा लोग कहते हैं कि इस संसार से पुण्य कभी मिट नहीं सकता क्योंकि पाप उसी की आड़ में छिप सकता है। सीधी बात कहें तो अब भले काम भी दुष्ट लोग करने लगे हैं। कहीं किसी धर्म, साहित्य, या संस्कृति से जुड़ा काम करना हो तो भले लोग दूर हो जाते हैं क्योंकि उसके लिये साधन जुटाना अब उनके बूते का काम नहीं रहा है। इसलिये बाहुबली और चालाक लोग उस काम को अंजाम देते हैं। तय बात है कि वह इसके लिये स्वच्छ छवि वाला आदमी साथ रखते हैं ताकि उनको पैसा मिले। फिर हमारे देश के सौदागरों ने विश्व में अपना स्थान बना लिया है मगर उनकी कोई इज्जत नहीं करता। बल्कि विदेशी सेठ आकर उनको जनकल्याण करने का उपदेश देते हैं। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हमारे भारत देश विश्व में बदनाम हो गया है। ऐसे में बाज़ार के सेठों को लगा होगा कि एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन इस देश में चलते रहना चाहिए ताकि विश्व में कुछ देश की छवि सुधरे तो उनका भी सम्मान बढ़े। भ्रष्टाचार तो मिटवाना नहीं है पर जंतर मंतर पर खालीपीली प्रदर्शन होते रहने से देश के इसके विरुद्ध सक्रिय रहने का संदेश तो विश्व में जाता ही है। फिर साफ सुथरी छवि वाले लोग हमारे देश में हैं यह बताने का भी अवसर मिलता है। सबसे बड़ी बात यह कि लोगों का ध्यान बंटा रहता है और सारे काम चलते रहते हैं। पहले आतंकवाद पर अधिक ध्यान था अब भ्रष्टाचार पर चला गया है। मतलब एक राक्षस की तरफ लोगों का ध्यान लगाये रहो। अनेक लोग शायद इस बात को न समझें पर ज्ञानी लोग इस ध्यान के खेल को जानते हैं जिसमें क्रिकेट एक विषय होता है। बहरहाल यह बात उन्हीं प्रचार माध्यमों-टीवी और समाचार पत्र पत्रिकाओं के प्रसारणों के आधार पर कही जा रही है जो कहीं न कहीं बाज़ार के बंधुआ बन गये हैं। हालांकि यह भी सच है कि इस तरह के प्रदर्शन दबाव बनाने के काम आते हैं।
बाबा रामदेव ने एक बार कहा था कि उनसे काम कराने के लिये एक मंत्री ने पैसा मांगा था। उन्होंने नाम नहीं बताया। लोग अब भी पूछते हैं कि पर वह यह कहकर टाल देते हैं कि हमारी लड़ाई भ्रष्टाचारी से नहीं बल्कि उसकी प्रकृति से है। फिर हमें व्यवस्था में बदलावा लाना है जिससे कि भ्रष्टाचार मिटे।
उनका यह विचार सही है पर सच बात तो यह है कि व्यवस्था में बदलाव तभी संभव है जब यथास्थितिवादियों के साथ आमने सामने की लड़ाई लड़ी जाये। जब देश में दो बड़े लोग इतना बड़ा आंदोलन चला रहे हैं तब भी केंद्रीय बोर्ड की परीक्षा का पेपर सरेआम छह लाख रुपये में बिक जाता है। कम से कम उत्तर प्रदेश पुलिस की इस बात की प्रशंसा तो करना चाहिए कि उसने यह मामला पकड़ा। ऐसे में यह सवाल भी आता है कि क्या केवल पुलिस के भरोसे ही सारा काम सौंप देना चाहिए। समाज की अपनी क्या भूमिका हो, इस बात पर भी विचार करना चाहिए। वरना तो भ्रष्टाचार मिटने से रहा।
भ्रष्टाचार विरोधी लोग केवल सड़कों पर बिना लक्ष्य के ही प्रदर्शन करते रहें तो उससे क्या लाभ होने वाला है? चूंकि अब हम देख रहे हैं कि देश में कुछ शिखर पुरुष अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने की ठान चुके हैं-ऐसा लगता है कि प्रत्यक्ष रूप से वह इसलिये नहीं आना चाहते क्योंकि अंततः वह कहीं न कहीं बाज़ार की ताकत को जानते हैं। दूसरे जब कानून व्यवस्था बनाने वाले संगठन अब अधिक सक्रिय हो रहे हैं तो समाज में सुधार लाने वाले आंदोलन अब अपनी शैली बदलें ताकि सरकार और समाज का आपसी समन्वय बढ़े।
इसके लिये उपाय यह है कि
1. जहां जहां भ्रंष्टाचार व्याप्त है सामाजिक संगठन वहां अपने कार्यकर्ता प्रदर्शन के लिये भेजें। जिन व्यक्तियों पर भ्रष्टाचार का शक प्रमाणित है तो उसके घर पर भी प्रदर्शन करने का विचार करें। एक बात या रखें कि भ्रष्ट आदमी की कमाई वह अकेले नहीं खाता। उसके परिवार और रिश्तेदार भी न केवल खाते हैं बल्कि प्रेरक भी वही होते हैं। याद रखें ऐसे प्रदर्शनों में हिंसा कतई नहीं होना चाहिए क्योंकि वह सारा लक्ष्य बिगाड़ देती है। जो कानून के शिकंजे में है उनका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।
2. जो बड़े पदों पर हैं और उनकी आय और संपत्ति भ्रष्टाचार से बनी हो उनका सम्मान कतई न करें। जिन पत्रकारों, समाजसेवकों और ब्लाग लेखकों को लगता है कि किसी ने गलत काम से पैसे बनाये हैं उसका उल्लेख नाम लेकर करें। आप किसी पर सीधे भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकते क्योंकि तब कानून आपका साथ नहीं देगा पर प्रत्यक्ष रूप से दिखने वाली आय से अधिक संपत्ति की चर्चा तो कर ही सकते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोग तो ऐसे हैं जो दूसरे के नाम से यह छद्म नाम से संपत्ति भी लेते हैं। इसकी छानबीन करना जरूरी है। अभी कुछ प्रकरणों में जांच एजेंसियों ने ही ऐसे तथ्य उजागर किये जो प्रचार माध्यमों में दिखाई दिये।
3. अगर आपको मालुम है कि अमुक व्यक्ति भ्रष्ट है तो उसका आमंत्रण किसी रूप में न स्वीकारें।
एक बात तय रही है कि भ्रष्टाचार किसी का निजी विषय नहीं है। हम यह नहीं कह सकते कि अमुक व्यक्ति हमारा मित्र है इसलिये उससे संबंध रखना पड़ता है भले ही भ्रष्ट गतिविधियों में वह लिप्त है। यह उसका निजी मामला है।
कहने का अभिप्राय यह है कि आपको सामूहिक प्रयास करने तथा हवाई लक्ष्य रखने के साथ ही निजी संघर्ष करते हुए निजी लक्ष्य भी ढूंढने होंगे। वैसे इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकारी और गैरसरकारी तौर पर जो प्रयास हुए हैं उससे एक संदेश तो समाज में चला ही गया है कि दौलत, शौहरत, उच्च पद तथा बाहुबल होने से ही इंसान सब कुछ नहीं हो जाता। ऐसा अगर होता तो अनेक बड़े लोग जेल नहीं पहुंच गये होते। हालांकि यह हैरानी की बात है कि इसके बावजूद भी पेपर आउट जैसी घटनायें हो रही है। मतलब भ्रष्ट लोगों के अंदर डर अभी तक पैदा नहीं हुआ। ऐसे में यह कहना पड़ता है कि अभी आगे और लड़ाई है जिससे सरकार के साथ समाज को मिलकर जूझना होगा। जंतर मंतर पर कोई ऐसा भ्रष्टाचार विरोधी देवता नहीं रहता जो इससे मुक्ति दिला सके।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
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