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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, June 6, 2014

खबरों की उठती गिरती लहरें-तीन हिन्दी क्षणिकायें(khabron ki uthte girti laharen-three short hindi poem)



जिस मशहूर आदमी के हाथ में कोई काम नहीं रह पाता है,
वही सर्वशक्तिमान के दर पर मत्था टेकने पहुंच जाता है।
कहें दीपक बापू पर्दे पर दिखने के  लिये बेताब है सभी
 कोई इंसान अपने चरित्र से भी बेपर्दा हो जाता है।
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पर्दे पर चेहरा दिखाने का मोह इंसानों को भटका देता है,
कोई चलता भद्दी चाल कोई चरित्र सरेराह लटका लेता है।
कहें दीपक बापू मूर्खतापूर्ण अदाओं से  बहलाने वाला आदमी
लोकप्रिय होने की तख्ती अपने नाम के साथ अटका देता है।
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खबरची किसी की लहर ऊपर उठाते किसी की गिराते हैं,
डूबने वाले से करते किनारा 
मगर खुद पार लगने वाले पर अपनी मेहरबानी दिखाते हैं।
कहें दीपक बापू पर्दे पर खबरें लहरों की तरह बहती हैं,
आ गयी खोपड़ी के किनारे उन पर ही हम नज़र टिकाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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