एक लेखक होने पर अनेक बार ऐसे लोग मजाक बना जाते हैं जिनको कलम बैरी लगती
है। अगर कहीं कोई फार्म भरना हो तो मुंह
उठाये बिना पेन के चले आयेंगे। कहेंगे‘फार्म भर दो’। हम पूछे अपनी लाये हो’? जवाब मिलेगा ‘हम तुम्हारी तरह
लेखक थोड़ी ही हैं कि पेन लेकर घूमे।’
पेन लायेंगे नहीं! फार्म स्वयं
भरेंगे नहीं! ऐसे में अगर लेखक मित्र हो तो उसे बिना बहस के उनका काम यह सोचकर काम
करना पड़ता है कि अगर अधिक बात की तो अपना
ही मजाक बनेगा। बहरहाल बसंत पंचमी की सुबह
हमने रास्ते में उन मित्र को उनका फार्म भर कर दिया। हम चलने को उद्यत हुए तो बोले-अरे हां, 26 जनवरी आ गयी है तुम आठ साल से इंटरनेट पर लिख रहे हो। देखना कहीं तुम्हारे
नाम से पुरस्कार न आये। भई, तुम जैसे लोगों ने हिन्दी के लिये इंटरनेट पर
बहुत कुछ लिखा है।’’
हमने पूछा‘तुमने पढ़ा है?’
’’नहीं,
मेरा बच्चा बता रहा था। कहीं धोखे से वह तुम्हारे
फेसबुक पर चला गया था।’’उसने बताया।
‘‘हां, कभी कभी धोखे से ही लोग हमारे ब्लॉग या फेसबुक पर आते हैं और उस पर लिखने
से कोई न तो प्रतिष्ठा मिलती है न धन ही। कहा जाता है कि इन दोनों का व्यवहार कूड़े
की तरह होता है। जहां पहले ही धन मौजूद हो वहीं लोग डालते हैं। सम्मान भी उसी तरह ही वहां दिये जाते हैं जहां
पहले ही संबंधित की प्रतिष्ठा साथ हो। हमारे भाग्य से दोनों ही कूड़ेदान दूर रहे
हैं।’हमने हसंकर कहा।
वह बोला-‘यह तो तुम्हारी खिसियाहट है।’’
हमने हंसकर कहा-‘‘हां तुम यह कह सकते हो।
वह बोला-‘‘यार, बुरा मत मानना मैंने अनेक बार तुम्हारे लेख पढ़े हैं। बहुत अच्छा लिखते
हो। मेरे एक बात समझ में नहीं आती कि
तुम्हें अपेक्षित सम्मान क्यों नहीं मिला?’’
हमने हंसकर कहा‘-मित्र होने के नाते तुम अपेक्षा रख सकते हो पर
हमने कभी ऐसा नहीं सोचा।’’
हम स्वयं के लिये अपेक्षा नहीं करते पर इस इंटरनेट पर हमने अनेक ऐसे लेखक
देखे हैं जिन्हें अंतर्जाल पर हिन्दी जाल बिछाने के लिये हमेशा प्रयासरत देखा है।
मुश्किल यह है कि इंटरनेट का उपयोग सभी कर रहे हैं पर धनपति तथा उनके प्रबंधकों के लिये सभी प्रयोक्ता हैं। आज आठ साल हो गये हैं तो हमारा मानना है कि
अंतर्जाल पर सक्रिय कुछ लोगों को पद्मश्री या पदमविभूषण सम्मान मिल जाता तो अच्छा
होता। हालांकि हमारे यहां बाज़ार और प्रचार समूहों की पकड़ हर क्षेत्र में ऐसी है कि
वह किसी निष्काम अंतर्जाल लेखक को सम्मानित नहीं कर सकते। उन्हें केवल
बने बनाये नायक और चेहरे चाहिये।
उनके लिये धन और प्रतिष्ठा का नकदीकरण करने वाला ही प्रशंसनीय है।
अंतर्जाल पर आठ वर्ष तक बने रहने के बाद उससे बाहर के लेखक, प्रकाशक और प्रचार प्रबंधक हमारे लिये एक अजूबा उसी तरह बन गये हैं जैसे कि
हम उनके लिये हो सकते हैं। उन्हें अपने लोग पुरस्कृत कराने हैं। इस तरह
अपने अर्थतंत्र की ताकत दिखानी है। बहरहाल हमने जब अपने अध्यात्मिक यात्रा
में मनुस्मृति शामिल की तब हमारे एक ब्लॉग लेखक मित्र ने बता दिया था कि किसी भी
विचाराधारा का नियंत्रण आर्थिक, कला तथा समाज के क्षेत्र में हो आप कभी
मनुस्मृति पर लिखने के बाद सम्मान की आशा कभी न करें। एक अंतर्जालीय प्रयोक्ता के रूप मेें आठ सौ
रुपये हर माह खर्च करते हैं और कभी इससे बड़ी छवि की अपेक्षा भी नहीं
करते। बहरहाल कुछ मित्रों के लेख पढ़कर
लगता है कि उन्हें सम्मान अवश्य मिलना चाहिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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