समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, March 8, 2017

लगे करचोरी में सीना फुलाते हैं-दीपकबापूवाणी (Strong Body Languase Of TexThief-DeepakBapuWani)

मुफ्त में तोहफे सभी आशिक चाहें, अक्ल के अंधे इश्क में ढूंढें रौशन राहें।
‘दीपकबापू’ जज़्बात के बाज़ार में खड़े, सौदागरों के दाम सुन भरते आहें।।
------
बंद कर दिये भक्ति के अपने दरवाजे, आसक्ति के घर बजा रहे बाजे।
‘दीपकबापू’ अमृत से किया मन खाली, विष में ढूंढते आनंद फल ताजे।।
-----
बाहर वजूद ढूंढते रहे अंदर झांका नहीं, चीजों का मोल किया अपना आंका नहीं।
‘दीपकबापू‘ देखते रहे सब का वेश, कभी अपने फटे वस्त्र पर लगाया टांका नहीं।।
.........
जिंदगी की राहें कहीं भी मुड़तीं हैं, हृदय की भावनाऐं कहीं भी जुड़ती हैं।
‘दीपकबापू’ फिर भी बेचैनी बांधे चलते साथ, सोच चिंता में उड़ती है।।
--------
अनोखे दिखने में सब आम लगे हैं, जरूरतों के गुलाम खुद को ठगे हैं।
‘दीपकबापू’ न जागते न नींद आती, लालच से पैदा संकट में सब जगे हैं।।
--
भीड़ में मिलने वाले होते तो अकेले में खड़े तुम्हें क्यों बुलाते।
जज्बात मरे होते तो तुम्हारी याद के सहारे उनको कैसे सुलाते।।
--------
अपनी नीयत पर बस नहीं चलता, गैर के हर कदम पर शक पलता।
‘दीपकबापू’ छिछोरे से बने सुल्तान, बात से बतंगड़ में पूरा दिन ढलता।।
---------
नशे में गुम तो पूरा जमाना है, किसी को पीना किसी को कमाना है।
‘दीपकबापू’ कहीं हिसाब नहीं लिखा, बुरी आदतें भूलने का बहाना है।।
------
लोहे की सलाखें हों तो यूं ही फाड़ें, मन का पिंजर भाव से कैसे झाड़ें।
‘दीपकबापू’ चाहतों की बनायी बड़ी सूची, बाकी दुनियां का दर्द कैसे ताड़ें।।
-------
जिंदगी जीन के भी कई ढंग हैं, मस्ती के रास्ते भी बहुत तंग हैं।
‘दीपकबापू’ नजरिये का खेल देखें,  स्याल धवल आंखों में भरे रंग हैं।।
ज्ञानी कहां मिले सब माया को रोय, गुरु ढूंढे सभी धन से पस्त होय।
‘दीपकबापू’ भृकृटि पर गढ़ाये दृष्टि, ज्ञान की तेज धारा में मस्त होय।।
-------
बंद कर लेते अपने दिल के दरवाजे, मुख से प्रेम शब्द के बजाते बाजे।
‘दीपकबापू’ सोच से किया किनारा, कंधे पर ढो रहे चिंताओं के जनाजे।।
-------

लगे करचोरी में सीना फुलाते हैं, अनजान लोग साहुकार नाम बुलाते हैं।
‘दीपकबापू’ अपना महिमामंडन करते, दान के पाखंड रचकर पाप भुलाते हैं।।
---------
शब्द में बोले पर दिल से प्रेम कभी किया नहीं,
सम्मान के नारे लगाये पर किसी को दिया नहीं।
सभी एक दूजे पर घाव करने के लिये हैं आमादा,
‘दीपकबापू’ किसी ने मरहम लगाने को लिया नहीं।।
-

No comments:

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर