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Sunday, April 9, 2017

ढोल की तरह दूर का चेहरा भी हर बार नया लगे-हिन्दी क्षणिकायें (Dhol ki taraha door ka chehara bhi naya lag-Hindi Short Poem)

रोज नये नायक
बदलाव की बात कह जाते हैं।
फिर मजबूरी जताकर
चलती धारा में बह जाते हैं।
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दिल पर नाम लिख्स
फिर मिटा देते हैं।
आज के आशिक
मासूम दिल
कितनी बार पिटा लेते हैं।
-
इश्क आशिक की इबादत है
भक्ति प्रेमी की आदत है।
हर भाषा का भाव अलग
यही अदावत है।
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दिल का क्या कसूर
मौसम बदल जाते हैं।
बेवफाई पर सवाल क्यों
हालात से मतलब के
दौर बदल जाते हैं।
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सब पी रहे दर्द
एक बूंद खुशी की आस है।
फिर भी डालते हाथ वहां
जहां लालची का वास है।
-------
जिंदा इंसान की
परवाह नहीं
मरे हुए भूत से डरते हैं।
मिट्टी के बुत में सौंदर्य
कपास के सूत से भरते हैं।
-
वही कत्लखानों में फरिश्ता
अपना देखते हैं।
जो लाश खाकर
सेहत बनाने का
सपना देखते हैं।
---
पहचान से सभी
अपने नही हो जाते।
कटु सत्य के साथी
कभी सपने नहीं हो पाते।
......
ढोल की तरह
दूर का चेहरा भी
हर बार नया लगे।
जिसके पास है
उसे गुजरा गया लगे।
-------
मदारी भी बंदर के
सहारे भीड़ लगा लेते हैं।
तारीफ है उनकी 
जो मौन से ज़माने में
चेतना जगा देते हैं।
-
डूबने का खतरा
उनके लिये 
जो भीड़ में  नाव पर चढ़े हैं।
डरे हैं वह
जो औकात से ज्यादा
बड़े तख्त पर चढ़े हैं।
---
ऊचे ओहदे पर
कोई मद से नहीं बच पाता।
खाना पचाने के ढेर मंत्र
पर खजाना कभी नहीं पच पाता।

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