समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
Showing posts with label hindi comic poem. Show all posts
Showing posts with label hindi comic poem. Show all posts

Friday, October 29, 2010

हास्य कविता-आदर्श चरित्र और आम आदमी-हिन्दी (hindi hasya kavita-adarsh charitra aur aam admi-hindi hasya kavita)

सुनते थे
शहीदों की चिता पर लगेंगे मेले,
नाचेंगे जहां आज़ादी के अलबेले,
मगर अब कहीं गैस एजेंसी तो
कहीं पेट्रोल पर उनके नाम पर बन जाते हैं,
कहीं ऊंची इमारतों में आवास भी तन जाते हैं।
उनकी विधवाओं और बच्चों को
मिलना हो बसेरा,
आम आदमी को भी हो जाता वहीं फेरा,
यह अलग बात है,
खास आदमी वहां भी हक
अपने नाम से मार जाते हैं,
शहीदों की चिता पर मनाते दिखावे का शोक,
मगर अपनी लालच पर नहीं रखते रोक,
बना देते उनका भूला हुआ आदर्श चरित्र
खुद ओढ़ लेते आम आदमी की चादर,
मुश्किल है समझना
आम आदमी फिर कौन कहलाये जाते हैं।
------------

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

Friday, March 26, 2010

सबसे बड़ा हमदर्द-हास्य कविता (Hamdard-hasya kavita)

लोगों के जल संकट से
हमदर्दी जताने के लिये उन्होंने
पूरा एक दिन सड़क पर
अनशन कर बिताया।
भले ही तंबू को चारों तरफ से ढंककर
गर्मी से बचने के लिये ऐसी भी लगवाया,
समय अच्छा बीते इसलिये टीवी भी चलवाया,
चेलों ने मजे लेकर नारे लगाये
उनको लोगों का सबसे बड़ा हमदर्द दिखाया।
----------

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

Monday, March 1, 2010

सफेद कागज-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (white paper-hindi satire poem)

सिर उठाकर आसमान में देखा तो लगा
जैसे हम उसे ढो रहे हैं,
जमीन पर गड़ायी आंख तो लगा कि
हम उसे अपने पांव तले रौंद रहे हैं।
ठोकर खाकर गिरे जब जमीन पर मुंह के बल
न आसमान गिरा
न जमीन कांपी
तब हुआ अहसास कि
हम कोई फरिश्ते नहीं
बस एक आम इंसान है
जो इस दुनियां को बस भोग रहे हैं।
---------
अपने से ताकतवर देखा तो
सलाम ठोक दिया,
कमजोर मिला राह पर
उसे पांव तले रौंद दिया।
वह अपनी कारगुजारियों पर इतराते रहे
काली करतूतें
सफेद कागज में ढंकते रहे
पर ढूंढ रहे थे अपने खड़े रहने के लिये जमीन
जब समय ने उनके कारनामों को खोद दिया।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर