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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, December 7, 2007

सच से अपने को कैसे छिपाऊँ

कभी-कभी यह ख्याल आता है
की सब छोड़ कर वन में चला जाऊं
फिर सोचता हूँ कि
अपने मन से दूर कहाँ जाऊं
यह सफर जिन्दगी का हम तय करते हैं
अपने मन के कहे पर
भ्रम यह है कि हम चल रहे हैं
इस सच को अपने से कैसे छिपाऊँ

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