इस समय हिन्दी जगत में चार चौपालें हैं-नारद, ब्लोगवाणी, चिट्ठा जगत और हिन्दी ब्लोग। एक ब्लोगर के रूप में मैं इनमें सभी के प्रति एक जैसा भाव रखता हूँ और जो अन्य ब्लोगर हैं उनको भी यह सुझाव देता हूँ की वह चारों पर बराबर चहलकदमी करें ताकि इसके कर्णधारों और तकनीशियनों का मनोबल बना रहे। ऐसा नहीं है कि इनमें किसी का महत्व कम है। जब हम एक साथ यहाँ लिख रहे हैं तो आत्मीय भाव बनता ही है और किसी के प्रति कम और अधिक हो सकता है पर इसका यह आशय कदापि नहीं है कि हम सार्वजनिक रूप से उसे प्रदर्शित करें।
मैं कंप्यूटर तकनीकी के बारे में अधिक नहीं जानता पर अंतर्जाल पर निरंतर घूमते- फिरते कई ऐसी चीजें दिखाईं देती हैं जो कई तरह के नये आभास देती हैं। इनके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि इन चारों की आपस में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। चारों में बस एक ही समानता है वह यह कि हिन्दी के ब्लागर इनसे जुडे हैं और वह इनके साथ भानात्मक रूप से लगाव अनुभव करते हैं । वैसे इन सबके मार्ग अलग-अलग हैं और उनके सामने चुनौतियां भी अलग हैं। मेरा ब्लोग कई और जगह भी है फिर मैं इन चौपालों की बात ही क्यों कर रहा हूँ। इन चौपालों का महत्व मैं समझता हूँ। आपने देखा की ब्लोगर ने वेबसाईट बना ली पर इन चौपालों पर बने हुए हैं। इसका कारण यहाँ बने रहने का मतलब है कि आपकी ब्लोग भी वेब साईट जैसी ताकत रखते हैं। इन चौपालों के कार्य और परिणाम अलग-अलग है पर उस पर मैं अभी प्रकाश नहीं डालूँगा क्योंकि इस समय कई ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अब इन सबको जो सामूहिक चुनौती मिलने वाली है।
चिट्ठाजगत के कर्णधार ने कल चिट्ठजगत पर एक वेबसाईट डाली थी और बताया था कि वह उनके सामने परेशानी पैदा करने आ जाती है-और यह नये परिवर्तन करने के बाद आ रही हैं। वह इसका मतलब जो भी समझे पर मैं कुछ और ही समझ रहा हूँ। चिट्ठजगत से मेरा संवाद रहा है और मैंने उनको साहित्य और आध्यात्म की श्रेणी का विचार बताया था। उनका जवाब था कि हमारी श्रेणियां अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार हैं। मेरी बताई श्रेणियों में में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उनमें मेरे ब्लोग स्वत: हे चहलकदमी कर रहे हैं पर यह अंतराष्ट्रीय मानक ज़रा विचार का विषय था। क्या चिट्ठजगत की श्रेणियां दूसरी वेबसाईटों पर भी हैं और वह क्या नहीं चाहतीं की कोई चौपाल इसका उपयोग करे। याद रखना इन श्रेणियों का मतलब यह है कि हमारे ब्लोग वहाँ होंगे और हो सकता है वह किसी को चुनौती देते हों। मेरे अपने ब्लोगों की पोस्टें सवा सौ से ऊपर श्रेणियों में हैं और वह उतनी जगह प्रकट होती हैं वेब साईटों के बाद। कहीं-कहीं तो अकेले ही मेरी पोस्टें धक्के खातीं हैं। चिट्ठाजगत के वेब साईट है और वह अपनी श्रेणियों के साथ चलकर कई वेब साईटों को चुनौती दे सकता है पर उनका यह संकट अकेले का नहीं है। बाकी चौपालें भी ऐसे संकटों का सामना कर सकती हैं। वजह हिन्दी के ब्लागर यहाँ है तो पाठक भी यहाँ आ रहे हैं और आयेंगे।
जो इस समय ब्लोगर हैं वह अपने श्रम की वजह से हैं वरना क्या जरूरत पडी हैं कि ब्लोगर अपनी पोस्टों पर लिखकर एक-दूसरे को सिखाते हैं? क्या वह लिखने में श्रम नहीं लगता। जैसे हिन्दी चौपालों पर रौनक बढेगी उसमें अपने लिए लाभ तलाशने वाले आयेंगे। दूसरी बात यह है कि यहाँ पाठक बने तो उसे अपने यहाँ खींचने की प्रतियोगिता शुरू होगी। जो लोग आर्थिक लाभ उठाते हैं वह अपनी तरफ से कोई नया स्त्रोत नहीं बनाते बल्कि पहले मौजूद स्त्रोतों का उपयोग करते हैं। हमारे ब्लोगरों ने अपने श्रम से जो ढांचा खडा किया है उसका दोहन करने के लिए लोग सक्रीय होंगे। वहाँ श्रीश शर्मा, सागर चंद नाहर, रवि रतलामी, उन्मुक्त और देवाशीष की तरह कोई सिखाने वाला नहीं है बल्कि इनके सिखाये का अपने हित के लिए उपयोग करनी की उन लोगों में इच्छा होगी।
मुझे यहाँ लोगों ने सिखाया है पर कई चीजों का उन्हें भी अंदाजा नहीं है और है तो जाहिर नहीं कर रहे हों। अपने मेरे कुछ ब्लोगों पर ऐसे नोट देखे होंगे जिसमें मैंने केवल ब्लोगर को ही अपने ब्लोग लिंक करने की छूट दी है। ब्लोगर में वह चौपालें भी जहाँ मैं पंजीकरण कराता हूँ। इसके बावजूद कुछ वेब साईट जिन पर विज्_ंजापन भी है मेरे ब्लोग लिंक कर रहीं हैं। अभी अधिक व्युज नहीं है पर हो सकता है कि मैं उन पर आगे चलकर आपत्ति उठाऊँ। बहरहाल अभी आपस में मतभेद हों कोई बात नही पर मनभेद मत करना। इन चौपालों के ब्लोगरों को अपना पाठक बनाने के लिए कई प्रयास होंगे पर उन्हें कोई आथिक फायदा हो यह सिर्फ चौपालों की सहायता से संभव होगा-क्योंकि तकनीकी और व्यवसायिक जानकारी हमें यहीं से मिल सकती है। मैं आपसी टकराव में कोई हित नहीं देखता। चौपालों के कर्णधार भी यह समझें कि उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और ज़रा-ज़रा सी बात पर कोई कड़ी कार्यवाही करना कोई उचित नहीं है। वह ऐसे ब्लोग आन्दोलन की सफलता से अपने हाथ धो बैठेंगे जिसे बडे परिश्रम से शुरू किया है। चौपाल को बनाने मैं कितनी मेहनत होती हैं वह जानते हैं और मैं परिश्रमी लोगों को देखता हूँ तो सोचता हूँ कि उनको अधिक से अधिक लाभ हो क्योंकि मुझे आज दिमागी और शारीरिक दोनों दृष्टि से परिश्रम करना पड़ता है और यही कहना कि धीरज रखो अपने दिन भी आयेंगे, जब सबके ब्लोग हिट हो जायेंगे।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
1 comment:
दुनिया में तो हर तरह के लोग हैं।
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