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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, December 25, 2007

बौद्धिकता का धंधा

एक विचारक पहुंचा दूसरे के पास
और बोला
'यार आजकल कोई
अपने पास नहीं आता है
हमसे पूछे बिना यह समाज
अपनी राह पर चला जाता है
हम अपनी विचारधाराओं को
लेकर करें जंग
लोगों के दिमाग को करें तंग
ताकि वह हमारी तरफ आकर्षित हौं
और विद्वान की तरह सम्मान करें
नहीं तो हमारी विचारधाराओं का
हो जायेगा अस्तित्व ही खत्म
उसे बचने का यही रास्ता नजर आता है'

दूसरा बोला
'यार, पर हमारी विचारधारा क्या है
यह मैं आज तक नहीं समझ पाया
लोग तो मानते हैं विद्वान पर
मैं अपने को नही मना पाया
अगर ज्यादा सक्रियता दिखाई
तो पोल खुल जायेगी
नाम बना रहे लोगों में
इसलिये कभी-कभी
बयानबाजी कर देता हूँ
इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं आता है'

विचारक बोला
'कहाँ तुम चक्कर में पड़ गये
विचारधाराओं में द्वंद में भला
सोचना कहाँ आता है
लड़कर अपनी इमेज पब्लिक में
बनानी है
बस यही होता है लक्ष्य
किसी को मैं कहूं मोर
तो तुम बोलना चोर
मैं कहूं किसी से बुद्धिमान
तुम बोलना उसे बैईमान
मैं बजाऊँ किसी के लिए ताली
तुम उसके लिए बोलना गाली
बस इतने में ही लोगों का ध्यान
अपनी तरफ आकर्षित हो जाता है'

दूसरा खुश होकर उनके पाँव चूने लगा
और बोला
'धन्य जो आपने दिया ज्ञान
अब मुझे अपना भविष्य अच्छा नजर आता है'

विचारक ने अपने पाँव
हटा लिए और कहा
'यह तो विचारों के धंधे का मामला है
सबके सामने पाँव मत छुओ
वरना लोग हमारी वैचारिक जंग पर
यकीन नहीं करेंगे
मुझे तो लोगों को भरमाने में ही
अपना हित नजर आता है।
दिनभर हम झगडा करेंगे
रात को किसी होटल में बोतल खोलेंगे
बेबात के मुद्दे उठाएंगे
अपने बौद्धिक धंधे यह रास्ता तो
दौलत और शौहरत के तरफ जाता है
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