समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, June 30, 2008

तंग दायरों में मुरझा जाती काया-हिंदी शायरी

तिनका तिनका कर बनाया घर
पर वह भी कभी दिल में न बस सका
ख्वाहिशें लिये भटकता शहर-दर-शहर
दोपहर की जलती धूप हो शाम की छाया

कभी चैन नसीब न हो सका
चाहत है पाना कागज के टुकड़ों की माया
देखना है सोने से बनी काया
एक लोहे और लकड़ी की चीज आती
तो दूसरे के लिये मन ललचाया
कहीं देखकर आंखें ललचाती सुंदर कामिनी की काया
तन्हाई में जब होता है मन
तब भी ढूंढता है कुछ नया
जिसका ख्वाब भी नहीं आया
खुले आकाश में कोई देखे
रात के झिलमिलाते सितारे
चंद्रमा की चमक देखे
जो होती सूरज के सहारे
आंखों से ओझल होते हुए भी
कर जाता हमारी रौशनी का इंतजाम
नहीं मांगने आता है नाम
सदियों से वह यही करता आया
इसलिये देखकर हमेशा मुस्कराया

अनंत है कुछ पाने का मोह
जो अंधा बनाकर दौड़ाये जा रहा है
कहीं अंत नहीं आता इंसान की ख्वाहिशों का
जब तक है उसके पास काया
डूबते हुए भी नहीं छोड़ता माया
अपनों के इर्दगिर्द बनाये घेरे को दुनिया कहता
अस्ताचल में जाते हुए भी
जमाने से हमदर्दी नहीं होती
जब चमक रहा होता है तब भी
तंग दायरों मे रहते हुए मुरझा जाती उसकी काया
.......................................
दीपक भारतदीप

2 comments:

Anonymous said...

bhut badhiya. badhai ho. likhate rhe.

E-Guru Maya said...

थोडी सी कठिन हिन्दी लगती है आपकी, अतः बड़े ही धैर्य के साथ आपको पढ़ती हूँ.

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर