पुराने बुद्धिजीवियों ने बना लिया
भाषा सम्मेलन को अखाड़ा
होना ही था कबाड़ा
एक ने कहा
‘पुराने विचारों को नये संदर्भ में
देख कर आग बढ़ते जायें
अपनी परंपराओं के सहारे ही
आधुनिक संसार में अपनी भूमिका बनाये’।
दूसरे ने कहा
‘भूल जाओ अपना पुराना ज्ञान
नये ख्याल से जुड़कर करो अभिमान
चलो पश्चिम की राह
भले ही सूरज वहां डूबता हो
पूर्व में हैं पौंगा पंथ
ऐसा ज्ञान भी किस काम का
जिसमें आदमी ऊबता हो
इसलिये हमने बनाये हैं नये देवता
जो गरीबों और कमजोरों के गुण गायें
नारे लगाते और वाद गाते
आप सभी नये भी उसी राह चले जायें।’
नये लोग हैरान और परेशान थे
तभी एक आया और पुराना बुद्धिजीवी
और बोला-
न इसकी सुनो
न उसकी बात गुनो
जहां मन हो वहीं चलते जाओ
नशे में न होश खोना
अपने लिये आगे संकट हो
कभी ऐसे बीज न बोना
आंखें रखना खुली
अपनी अक्ल से अपना बोझा ढोना
एक की राह पर चलकर
पौंगा पंथी बन जाओगे
दूसरे की राह चले
तो पढ़े लिखे गुलाम बनकर
विदेशी बोझा उठाओगे
आजादी से अपनी सांस लेना
कोई और बताये राह
इससे अच्छा है अपने विवेक से चुन लेना
देख कर भी सीखा जाता है बहुत कुछ
जरूरी नहीं है हर बात तुम्हें सिखायें।’
नये युवक खड़े सम्मेंलन के अखाड़े में
शब्दिक युद्ध देख रहे थे
तय नहीं कर पाये कि
‘कहा से चलें और कहां जायें
आखिरं एक सोकर उठे बुद्धिजीवी ने कहा
‘चलो अब सभी घर जायें
हम तो सोते रहे पूरे कार्यक्रम में
यहां क्या हुआ
कल अखबार मिले तो
इस अखाड़े की खबर पढ़ पायें।’
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3 years ago
2 comments:
आपको एवं आपके समस्त मित्र सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎं| नया वर्ष आप के जीवन में खुशियों की बाढ लाये|
naye saal ki badhai deepak ji.
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