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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, January 5, 2009

वीर नजर नहीं आ रहा है-हास्य कविता

एक कंपनी के मैनेजर ने
अपने विज्ञापन प्रबंधक से कहा
‘हम विज्ञापन पर इतना खर्च करते हैं
पर अपने उत्पादों का दाम ऊंचा नहीं जा रहा है
टीवी चैनलों और रेडियो पर
अपनी चीजों और विज्ञापनों का
असर कम नजर आ रहा है
देखों लोग उनसे बोर होकर
इंटरनेट पर जा रहे हैं
कुछ खास लोग अपने ब्लाग बना रहे हैं
पता करो तो वहीं लगाओ विज्ञापन
इस मंदी में खर्च बचाने का समय आ रहा है

सुनकर विज्ञापन मैंनेजर ने कहा
‘आपसे किसने कह दिया यह सब
टीवी चैनल और रेडियो फ्लाप भी हुए हैं कब
आतंकवादी जल्दी जल्दी कारनामे कर जाते
उनकी चर्चा होती रेडियो और टीवी चैनलों पर
बीच में अपने विज्ञापन भी आ जाते
उसके नारे जोरदार हिट पाते
फिर क्रिकेट के समय तो
हमारे उत्पाद के नाम सभी जगह छा जाते
बचे हुए समय में रियल्टी शो में भी
अपनी सभी कंपनियों के नाम आते
बनाया है बड़े लोगों ने ब्लाग
वह भी अपने ही उत्पादों मे माडल हैं
अपने ही कहने से अंतर्जाल पर लिखवाते
अन्य के ब्लाग कोई ज्यादा लोग नहीं पढ़ते
हिंदी वाले भी अंग्रेजी पर ही मरते
‘दीपक बापू ने लिखी है
ढेर सारी फ्लाप कवितायें
पर फिर भी उसके हिट होने का समय नहीं आ रहा है
क्रिकेट और आतंकवाद के खेल के बीच
उसका हर ब्लाग पिसा जा रहा है
जब होता है दोनों का प्रकोप
लोग इंटरनेट पर कम ही होते
यह वह खुद बता रहा है
जब तक जिंदा है क्रिकेट और आतंकवाद
उसका ब्लाग उठकर फिर रसातल में जा रहा है
अपना पूंजीतंत्र बहुत मजबूत है
जिसमें कोई छेद कर खुद अपना व्यक्तित्व बना ले
ऐसा कोई वीर नजर नहीं आ रहा है।

.......................................
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1 comment:

Anonymous said...
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