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Sunday, November 27, 2011

महंगाई, भ्रष्टाचार और दान की दर-हिन्दी हास्य कविता (megngai,bhratshtachar or corruption and donation or dan-hindi hasya kavita or comedy poem)

गुरुजी ने छेड़ा जैसे ही
महंगाई और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान
चेले का दिल घबड़ाया,
वह दौड़ा आश्रम में आया,
और बोला
‘‘महाराज,
आप यह क्या करते हो,
जिनकी हमारे आश्रम पर पर कृपा है
ऐसे ढेर सारे समाज सेवक
बड़े पदों पर शोभायमान पाये जाते हैं,
कहीं सौदे में लेते कमीशन
कहीं कमीशन देकर सौदे कर आते हैं,
आपके दानदाता कई सेठों ने चीजों में कर दी महंगाई,
क्योंकि उनकी कृपा जबरदस्त पाई,
भ्रष्टाचार और महंगाई से
आम आदमी भले परेशान है,
पर इससे आपके दानदाताओं की बड़ी शान है,
इस तरह अभियान छेड़ने पर
वह नाराज हो जायेंगे,
बिफरे तो हमारे यहां भी
आप अपना खजाना खाली पायेंगे,
इस तरह तो आपके आश्रम में
सन्नाटा छा जायेगा,
सेठ और समाज सेवकों के घर
दान मांगने वाला आपका हर चेला
जोरदार चांटा खायेगा।’’

सुनकर गुरु जी बोले
‘‘कमबख्त, मुझे सिखाता है राजनीति
होकर मेरा चेला,
नहीं है तुझे उसका ज्ञान एक भी धेला,
महंगाई और भ्रष्टाचार
देश में बढ़ता जा रहा है,
आम आदमी हो रहा है विपन्न
अमीर के धन का रेखाचित्र चढ़ता जा रहा है,
मगर अपने दान की रकम
बीस बरस से वही है,
यह बिल्कुल
नहीं सही है,
जाकर दानदाताओं से बोल दे,
महंगाई और भ्रष्टाचार की तराजु में
अपने दान की रकम तोल दे,
हमारी रकम बढ़ा दें,
हम अपने अभियान पर
अभी नहीं की सांकल चढ़ा लें,
अगर नहीं मानते तो
यह अभियान सारे देश में छा जायेगा,
अपने पुराने दानदाता रूठें परवाह नहीं
कोई नया देने वाला आयेगा,
वैसे तुम मत परवाह करो
बस, उनके सामने जाकर अपनी चाह धरो,
मुझे मालुम है
तुम इसलिये घबड़ाये हुए हो,
क्योंकि दान की बड़ी रकम
उनसे लेकर दबाये हुए हो,
मगर मुझे चिंता नहीं
अपने दान की रकम जरूर वह बड़ा देंगे,
पंगे के डर से दान बढ़ा देंगे,
इस तरह हमारा खजाना भी
महंगाई और भ्रष्टाचार की बढ़ती
ऊंची दर तक
अपने आप पहुंच जायेंगा।’’
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Tuesday, August 30, 2011

ईमानदारी का चेहरा-हिन्दी शायरी (imadari ka chehra-hindi shayari)

जमाने को रास्ता बताने के लिए
हर रोज एक नया चेहरा क्यों चाहिए,
इंसानों को इंसानों से बचाने के लिए
रोज किसी नए चौकीदार का पहरा क्यों चाहिए,
यकीनन इस धरती पर लोग
कभी भरोसे लायक नहीं रहे
वरना कदम दर कदम
धोखे से बचने के लिए एक ईमानदार क्यों चाहिए।
------------------
आओ
बेईमानों की भीड़ में
कोई ऐसा आदमी ढूंढकर
पहरे पर लगाएँ,
जिसकी ईमानदारी के चर्चे बहुत हों,
धोखा दिया हो
मगर कभी पकड़ा नहीं गया हो।
पुराने बदनाम हैं
इसलिए उसका चेहरा भी नया हो।
________________
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Monday, December 6, 2010

विकीलीक्स के खुलासे में अभी तक मज़ा नहीं आया-हिन्दी व्यंग्य (vikileeks secreat is not for enterntainment-hindi vyangya

विकिलीक्स के खुलासों में मज़ा नहीं आ रहा है। जो खबरें आ रही हैं वह पहले भी आ चुकी हैं। आतंकवादी यह कर रहे हैं वह कर रहे हैं। पाकिस्तान यह योजना बना रहा है और वह छोड़ रहा है। भारत में यह खतरा या वह भय! यह सब पहले भी पढ़ चुके हैं। भारतीय प्रचार माध्यम कई बार ऐसी चीजें देकर अपने विज्ञापन चलाते हैं। कुछ अनोखा नहीं दिखाई या सुनाई नहीं पड़ रहा है।
उधर अमेरिकी सरकार उसके संस्थापक के पीछे पड़ी है। अगर यही खुलासे हैं तो समझ में नहीं आता कि अमेरिकी रणनीतिकार उससे इतने भयभीत क्यों हैं? अमेरिका की विदेश मंत्राणी का कहना है कि यह खुलासे केवल आपसी संवाद हैं और इनका उनके देश की नीति से कोई संबंध नहीं हैं। फिर इतना होहल्ला क्यों?
दरअसल अमेरिका की अर्थव्यवस्था एशियाई देशों पर आधारित है और इन खुलासों में कुछ ऐसा होने की संभावना है जो उन्हीं देशों से संबंधित है जहां के रणनीतिकारों के नाराज होने पर उसे इसके परिणाम भोगने पड़ते हैं।
संगठित प्रचार माध्यम केवल वहीं खबरे दें रहे हैं जिनका कोई महत्व नहीं है। ऐसे में भारत के हिन्दी या अंग्रेजी ब्लाग लेखकों से ही यह आसरा है जो कुछ असाधारण खोज करें। ढाई लाख दस्तावजों को देखना कोई आसान नहीं है। मतलब जो ब्लाग लेखक इधर से उधर भाग रही विकीलीक्स की वेबसाईट पर जायेंगे उनको अपने देश के लिये सामग्री ढूंढना आसान नहीं है। अगर ऐसी ही चलताऊ सामग्री ढूंढेंगे तो उसका कोई मतलब नहंी रह जायेगा। हिन्दी ब्लाग लेखकों के लिंक से वह वेबसाईट देखी थी और लगा कि अगर भारत से संबंधित कुछ ढूंढना है तो बहुत मेहनत करनी होगी। फिर उसमें भी कुछ ऐसा जिसमें भय, खतरा तथा सामान्य समाचार समाचार जैसा न हो। उसमें ऐसा क्या हो सकता है? केवल भारत के शिखर पुरुषों और उनके मातहतों के अमेरिका तथा अन्य देशों से संबंधित व्यवहार या संवाद की ऐसी जानकारी जो अभी तक छिपाई गयी हो। अब तो यह तय हो गया है कि राज्य में बैठे अनेक बड़े अधिकारी वह काम कर रहे हैं जो दुश्मन देश का जासूस भी नहीं कर सकता। ऐसे अनेक अधिकारी जेल मैं हैं और यह कहना ठीक नहीं होगा कि बाकी सब ठीक ठाक हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि देश में इस समय जो घोटालों पर माहौल बना है वह इसी विकीलीक्स में किसी रहस्य को उजागर होने से बचाने के लिये हैं। विकीलीक्स को शायद इधर उधर दौड़ाया भी इसलिये जा रहा है कि किसी भी एशियाई देश की जानकारी अब लोग न देख पायें।
हिन्दी ब्लाग लेखकों में कुछ गज़ब के हैं। इनमें से अनेक न केवल अंग्रेजी और हिन्दी में एक जैसा महारथ रखते हैं। इनमें कुछ का तो वेद और कुरान पर एक जैसा विशद अध्ययन है! इनमें से अनेक वेबसाईटें खंगालते रहते हैं। जब कुछ अपन भाषा वालों के लिये अच्छा लगता है उसका अनुवाद कर प्रस्तुत भी करते हैं। यह कुशल समूह विकीलीक्स पर नज़र नहीं रखता हो यह संभव नहीं है। संभव है यह पूरा दिन वहां कुछ न कुछ ढूढते हों क्योंकि इधर उनकी सक्रियता कम दिख रही है।
ऐसे में उनको करना यह चाहिए कि उन्हें अपनी सरसरी दृष्टि से काम करना चाहिए। अगर वेबसाईट उनके सामने हो तो तुरंत अपने देश से संबंधित सामग्री न होने पर आगे बढ़ जाना चाहिए। इसके अलावा जहां खतरा, भय या योजनाओं की बात हो जो वह पहले से जानते हों उसे छोड़ दें। उनको ढूंढना चाहिए ऐसे व्यवहार, संवाद तथा विचार की जिससे यहां तहलका मच जाये। अब पाकिस्तानी के प्रधानमंत्री हों या राष्ट्रपति उनकी सोच से हमें क्या लेना देना? यह तो बुत भर हैं जो अमेरिका तथा विदेशी पूंजीपतियों द्वारा बिठाये गये हैं। सेना का हाल सभी को मालुम है। भारत के प्रति रवैया क्या है, यह जानने की जरूरत नहीं है। मुख्य बात है कि दोनों के बीच संपकों को लेकर अंदर क्या काला पीली होता है उसे जानना है। याद रखें कि कमरे के अंदर और बाहर की राजनीति अलग अलग होती है, वैश्विक उदारीकरण के इस इस दौर में दोस्ती और दुश्मनी भी क्रिकेट मैच की तरह फिक्स होती है। ऐसे हिन्दी ब्लाग लेखकों के ब्लाग पढ़ने में मजा भी आता है जो खोज परक जानकारी अपने ब्लाग पर देते हैं। वैसे अगर इनमें से कोई महारथी विकीलीक्स का भारतीय संस्करण बना डाले तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। भारत के आम पाठक इस बात का अनुमान नहीं कर सकते कि साफ्टवेयर में भारत का पूरे विश्व में लोहा माना जाता है और इसमें कुशल अनेक लोग ब्लाग भी लिखते हैं। उनके बारे में तभी अनुमान किया जा सकता है जब हिन्दी ब्लाग लेखन पर सक्रिय रहा जाये भले ही लेखक के रूप में नहीं एक पाठक के रूप में ही सही।
---------------

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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Monday, January 5, 2009

वीर नजर नहीं आ रहा है-हास्य कविता

एक कंपनी के मैनेजर ने
अपने विज्ञापन प्रबंधक से कहा
‘हम विज्ञापन पर इतना खर्च करते हैं
पर अपने उत्पादों का दाम ऊंचा नहीं जा रहा है
टीवी चैनलों और रेडियो पर
अपनी चीजों और विज्ञापनों का
असर कम नजर आ रहा है
देखों लोग उनसे बोर होकर
इंटरनेट पर जा रहे हैं
कुछ खास लोग अपने ब्लाग बना रहे हैं
पता करो तो वहीं लगाओ विज्ञापन
इस मंदी में खर्च बचाने का समय आ रहा है

सुनकर विज्ञापन मैंनेजर ने कहा
‘आपसे किसने कह दिया यह सब
टीवी चैनल और रेडियो फ्लाप भी हुए हैं कब
आतंकवादी जल्दी जल्दी कारनामे कर जाते
उनकी चर्चा होती रेडियो और टीवी चैनलों पर
बीच में अपने विज्ञापन भी आ जाते
उसके नारे जोरदार हिट पाते
फिर क्रिकेट के समय तो
हमारे उत्पाद के नाम सभी जगह छा जाते
बचे हुए समय में रियल्टी शो में भी
अपनी सभी कंपनियों के नाम आते
बनाया है बड़े लोगों ने ब्लाग
वह भी अपने ही उत्पादों मे माडल हैं
अपने ही कहने से अंतर्जाल पर लिखवाते
अन्य के ब्लाग कोई ज्यादा लोग नहीं पढ़ते
हिंदी वाले भी अंग्रेजी पर ही मरते
‘दीपक बापू ने लिखी है
ढेर सारी फ्लाप कवितायें
पर फिर भी उसके हिट होने का समय नहीं आ रहा है
क्रिकेट और आतंकवाद के खेल के बीच
उसका हर ब्लाग पिसा जा रहा है
जब होता है दोनों का प्रकोप
लोग इंटरनेट पर कम ही होते
यह वह खुद बता रहा है
जब तक जिंदा है क्रिकेट और आतंकवाद
उसका ब्लाग उठकर फिर रसातल में जा रहा है
अपना पूंजीतंत्र बहुत मजबूत है
जिसमें कोई छेद कर खुद अपना व्यक्तित्व बना ले
ऐसा कोई वीर नजर नहीं आ रहा है।

.......................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Monday, November 3, 2008

पंगेबाजी जिनका खेल है वही खेलें-हास्य कविता

फंदेबाज घर आया
साथ में हिट होने का फार्मूला भी लाया
सुनाते हुए बोला
"आज तो गजब हो गया
मेरे भतीजे ने एक लडकी की दिल जीतने के लिए
एक दांव खेला
पहले उसके दोस्त ने उस लडकी को छेड़ा
फिर मेरे भतीजे की मार को झेला
फिर उसने अपने दोस्त के लिए भी
ऐसी ही भूमिका निभाई
वही से यह आईडिया मेरे दिमाग में आया
क्यों न तुम भी अंतर्जाल पर हिट होने के लिए
किसी "पंगेबाज" से फिक्सिंग कर लेते
दोनों मिलकर एक दूसरे को हिट कर देते
सब जगह चलती है यह नूरा कुश्ती
जिसे नए जमाने के लोग फिक्सिंग कहते
जमाने को दिखाने के लिए दोस्त आपस में ही
एक दूसरे की मार सहते
और चलते जाते प्रचार के दरिया में बहते
देखो क्या जोरदार आईडिया मेरे दिमाग में आया"

पहले अपना गला खंखारा और
फंदेबाज की तरफ घूरते हुए बोले महाकवि दीपक बापू
"इस बात की तो हम माफ़ी मांग लेते हैं कि
खालीपीली तुम्हारे पास दिमाग न होने का शक किया
लग लगी है तुम्हें भी ज़माने की हवा
करने लगा है वह
जो ऐसा आईडिया दिया
भले ही प्यार और जंग में फिक्सिंग जायज हो
पर यहाँ हिट होने की सोचकर आया ही कौन था
लिखने निकले थे अपनी बात अपने ढंग से
कभी चिंत्तन तो कभी हास्य के रंग से
जब बोलता ज़माना भी लगता मौन था
जानते हैं आजकल नूराकुश्ती का चला पडा है खेल
हम नहीं करेंगे चाहे कहलायें फेल
रोना और हंसना
इल्जाम और तारीफ़
प्यार और दुत्कार
सभी फिक्स खेल की तरह लगते हैं
पहले होता था नाटकों और फिल्मों में अभिनय
अब तो सभी अभिनेता हो गये
फिर भी लोग उन पर यकीन करते हैं
अपने जज़्बात उनके साथ जोड़कर चलते हैं
मगर कोई खेल दूर तक नहीं चलता
जानते हैं कई लोग, उनका दिल अब नहीं मचलता
हमारे बूते का नहीं है यह सब
पता नहीं पोल खुल जाए कब
अभी तो लेखकों की जमात में
चुपचाप बैठे खेल देख तो रहे हैं
कहीं हिट हो गए तो पकडे भी जायेंगे
फिर टेंशन में कहाँ लिख पायेंगे
उठाकर बाहर कर दिए जायेंगे
आज हिट तो कल दूसरा पंगा कहाँ ले पायेंगे
पंगेबाज के लिए जरूरी है रोज पंगे लेना
भला हम कहाँ कर पायेंगे
झूटी तारीफों के साथ
इल्जामों में भी फिक्सिंग का हो गया है फैशन
फिक्सिंग के साथ मजा है उनके लिए
जिनका ख्याल अपने से आगे नहीं जाता
ज़माने की सोचने वालों को यह नहीं भाता
यह पंगेबाजी जिनका खेल हैं वही खेलें
हमें तो दर्शकों में ही हमेशा मज़ा आया

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Monday, October 6, 2008

अल्फाज़ का भाव भी बाज़ार में नीचे ऊपर चलता है-हिन्दी शायरी

उनकी आँखों में प्यार का दरिया
हमेशा बहता लगता है
क्योंकि बाज़ार के खिलाडी हैं
जहां इन्हीं अदाओं पर सौदागर का
काम चलता है

बाज़ार में दोस्ती होती नहीं
की जाती हैं फायदे के लिए
चले तो कई बरसों तक
प्यार और दोस्ती का सफ़र
यूं ख़त्म हो जाता है
जहां टूटा फायदे और मतलब का क्रम
वही सामने आ जाता है रिश्तों का भ्रम
जज्बातों का व्यापार ऐसे ही
सदियों से चलता है

चेहरे पर नाकाब सभी पहने
जरूरी नहीं हैं
अब तो जुबान से भी यह काम चलता है
अपने दिल की बात किसी को कहने से
कोई फायदा नहीं
बेच सकता है उसे सुनने वाला और कहीं
दोस्ती के व्यापारियों का क्या
सस्ते में प्यार बेच दें
अपने दिल की घाव क्या दिखाएँ उनको
दर्द का भाव तो बाज़ार में और महँगा चलता है

क्या अपनी जुबान से कहें
समय का इन्तजार ही है
आने से पहले सब खामोशी से सहें
अल्फाज़ हमारे अभी सस्ते ही सही
पर यह बाज़ार का खेल है
जिसमें भाव कभी नीचे तो कभी ऊपर चलता है
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यह हिंदी लघुकथा मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’ पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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Friday, August 29, 2008

अपने मतलब होते गहरे-हिंदी शायरी

उनके हैं सुंदर चेहरे

पर दिल पर हैं काली नीयत के पहरे

मुस्कराती आंखों के पीछे हैं

कुटिल भाव ठहरे

तुम्हारी सुनते लगते हैं

पर कान हैं उनके बहरे

लच्छेदार बातों से मन बहलाते हैं

सपने दिखाते महलों में बसाने के

तरीके बताते हैं जिंदगी में

चालाकियों के दांव आजमाने के

संवारने का दावा करते हैं जिंदगी

आ जाते हैं बहुत करीब

जैसे पितृपुरुष हों

पर उनके अपने मतलब होते गहरे

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Monday, August 25, 2008

छटांक भर की कविता से लोगों के दिल में छाये जाते-हास्य हिंदी शायरी

भरते हैं जेब अपनी माया से
फूल रहे हैं काया से
अपने जेब का बोझ नहीं उठा पाते
दूसरे की कविता को छ्रटांक भर का बताते

दोष उनका नहीं जमाने का है
जिन पर है माया का वरदहस्त
हो जाते हैं वह बोलने में मस्त
रचना किसे कहते हैं जानते नहीं
दूसरे के शब्दों को पढ़ते नहीं
कोई बताये तो अर्थ मानते नहीं
चंद किताबों से उठाये शब्द
यूं बाजार में ले जाते
साथ में पैसे भर घर ले आते
बड़े शहरों मे रहते
छोटे शहर के कवि को भी छोटा बताते ं
मगर सच भला किससे छिपता है
लिख लिख कर नाम और नामा कमाया
अपने ऊपर व्यवसायिक लेखक का तमगा लगाया
फिर भी नहीं बन पाये लोगों के नायक
पेशेवरों के ही रहे शब्द गायक
छटांक भर की कविता है तो क्या
लोगों के दिल में बैठ जाती है
देखने के छंटाक भर की लगे
भाव दिखाये गहरा
वही कविता कहलाती है
कहें महाकवि दीपक बापू
यूं तो तुम गाये जाओ
फब्तियां हम कसकर सभी से वाह वाह पाओ
हम छटांक भर की कविता से
लोगों के दिल में छाये जाते

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Sunday, August 24, 2008

समय से पहले चेत जाओ-हिंदी शायरी

शब्दों के शोर का आतंक मचाओ
दूसरे की गल्तियों को अपराध न बताओ
तुम्हारी आवाज को मिल गयी है
आजादी के साथ दौलत की ताकत
पर उस पर इतना न इतराओ

शिकायतों का पुलिंदा साथ लिये घूमते हो
पर अपनी गल्तियों को मजबूरी कहकर चूमते हो
नक्कारखाने से निकल आये हो
अपनी तूती में दूसरों के लिये
चुभने वाले तीर क्यों ढूंढते हो
अपनी कलम के तलवार हो जाने का जश्न न मनाओ

कब तब बहलाओगे
झूठ को सच बनाओगे
अपने दृष्टा होने के अहसास को
सृष्टा की तरह मत समझाओ
जमाने में कई लाचार है
जिनसे तुम्हारी तरह गल्तियां हो जाती हैं
पर छिपने के लिये वरदहस्त के अभाव में
सभी के सामने आ जाती हैं
उन पर तुम अपनी रोटी न पकाओ

जमाने में खून की होली खुले में खेलने वाले बहुत हैं
उनसे अपनी दृष्टि न छिपाओ
बढ़ सकते हैं उनके हाथ तुम्हारी तरफ भी
शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गरदन रेत में न छिपाओ
दूसरों की इज्जत से खेलने वाले खबरफरोशों
जब तक उसके पर्दे का सहारा है
लोग सह जाते हैं
अपना दर्द पी जाते हैं
तुम उन्हें मत डराओ
जमाना जब डरता है
तब ख्यालों से मरता है
कौम अगर शब्दों के शोर के आतंक तले
इस तरह मरती रही
तुम्हारी खबरें बेअसर हो जायेंगी
अनसुनी और अनदेखी कर दी जायेंगी
अपने आजादी के हथियार की धार को
बेजा इस्तेमाल कर उसे कुंद मत करो
नहीं तो फिर जुर्म पसंद दौलतमंदों के गुलाम हो जाओगे
समय से पहले चेत जाओ

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Wednesday, July 16, 2008

घड़ी की सुई जब तक तय न करे-हिंदी शायरी

जो दिल में बसते हैं
ऐसे लोगों की याद अकेले में
बहुत तरसाती है
उनसे मिलन की चाह सताती है
पर भला किसका बस चला है
इस समय पर
जो आदमी की जरूरतों को पास लाकर
अपनो से दूर कर देता है
जिंदगी भर के सपने गुजारने के सपने
एक पल में चूर कर देता है
इसलिये वादों पर क्या भरोसा करें
जो समय के पाबंद होते हैं
आदमी अपनी जुबाने से
चाहे कितने भी बात कर ले
घड़ी की सुई जब तक तय न करे
कोई ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाती है
.........................................
दीपक भारतदीप

Saturday, January 5, 2008

ब्लोग पर कमेन्ट लगाओ, पोस्ट हथियाओ

मैंने कुछ ब्लोगरों की पोस्टें मैंने पढी हैं जिसमें वह अन्य ब्लोगरों से दूसरे के ब्लोग पर कमेंट लगाकर उसका हौसला आफजाई की अपीलें करते हैं। मेरी उनसे मित्रता है इसलिए मुस्कराकर रह जाता हूँ पर यह पोस्ट मैं उनके इस आग्रह के समर्थन में नही लिख रहा हूँ बल्कि आपको यह बताने के लिए लिए लिख रहा हूँ कि दूसरों के ब्लोग पर कमेन्ट लगाकर कैसे उसकी पोस्ट हथियाई जाती हैं।

दरासल आपने देखा होगा कि किसी पोस्ट पर उसके लेखक का नाम इस तरह ब्लोग पर प्रिंट होता है कि लगता है कि पर उसकी शोभा का एक हिस्सा है। अधिकतर ब्लोग जो हम फोरमों पर देखते हैं और पता चल जाता है कि यह अमुक व्यक्ति का ब्लोग है पर अन्दर हम उसके नाम के वैसी शोभा नहीं देखते जितना उसके विषय को पढ़ते हैं। अगर आम पाठक की बात की जाये तो वह विषय ही पढता है और उसकी बहुत कम उसकी रूचि लेखक के नाम के बारे में रह जाती है। यह बात मेरे पहले ही दिन समझ में आ गयी थी इसलिए मैंने अपना नाम ऊपर ही रखा। हालांकि मुझे यह देखकर हंसी भी आती है पर अब जैसा चल रहा है चलने दो। एक खास बात जो मुझे लगी वह यह कि मेरे जो निजी मित्र हैं वह मेरे ब्लोग पर कमेन्ट देने वाले मित्रों के नाम अच्छी तरह जानते हैं। इसके अलावा मेरे ब्लोग पर जिनके ब्लोग लिंक हैं उनके बारे में भी पूछते हैं। मेरे एक मित्र का मानना है कि कमेन्ट देने वाले लोगों का नाम तो इसलिए याद रहते हैं क्योंकि वह पोस्ट का हिस्सा हो जातीं हैं और चूंकि
उनके नाम वहाँ चमकते हैं इसलिए पढाई में आते हैं लेखक का नाम तो कहीं दुबक जाता है।

मेरे एक मित्र ने मेरे ब्लोग पर लिंक कुछ ब्लोग खोले थे उसमें सभी ब्लोग पर हमारे एक प्रसिद्ध ब्लोगर के कमेन्ट थे और कुछ पर मेरे नहीं थे। वह उसका नाम आजकल न देखकर मुझसे पूछता है-''क्या वह आजकल सक्रिय नहीं है, क्या तुम्हारा उससे झगडा हो गया है। तुम भी यार दूसरों के ब्लोग पर कमेन्ट लगाया करो, उससे तुम्हारा ही नाम होगा।''
एक मित्र ने कहा-''कमेन्ट का मतलब है दूसरे की पोस्ट हथियाना, तुम भी यही करो क्योंकि तुम्हारा ऊपर नाम तो ऐसा लगता है कि ब्लोग का नाम है, तुम्हारी उससे कोई पहचान नहीं मिलती।''

हम लोग जब कमेन्ट देते हैं तो वहाँ हमारे नाम के साथ ब्लोग भी चिपक जाते हैं। यानी कि हो सकता है पाठक आपके नाम पर क्लिक कर आपका ब्लोग भी देख ले और नहीं तो आपको थोडी मेहनत में नाम भी तो मिल जायेगा। वैसे आजकल मैं थोडा रिलीफ अनुभव करता हूँ कि मेरी पोस्ट पर अधिक कब्जे नहीं होते। मैं इतनी मेहनत से लिखता हूँ और मेरे मित्र दूसरे ब्लोगरों की चर्चा की करें यह भला कौन सहन कर सकता है? मेरे मित्र मेरे ब्लोग पर रखी कमेंटों से भी इधर-उधर घुस जाते हैं और पढ़कर कहते हैं-यार, उसने बहुत अच्छा लिखा था।
''फिर कमेन्ट क्यों नहीं लगाई?'' मैं पूछता हूँ। मैंने उनको कमेन्ट लगाना के साथ हिन्दी टूल भी बता दिया है।
''हम ब्लोग बनाते तो कमेन्ट जरूर लगाते?'' वह कहते हैं। यही आकर वह खामोश हो जाते हैं।

जिन्हें प्रसिद्ध और नंबर वन ब्लोगर बनने की इच्छा हो वह आज से कमेन्ट लगाना शुरू कर दें। अगर उन्हें लगता है कि इसमें मुझे हिट होने की चाहत है तो मेरे ब्लोग को अनदेखा कर सकते हैं-दूसरे के ब्लोगों पर जाकर यह काम करें। शायद कुछ लोगों को मजाक लगे पर अगर आप जिन ब्लोगरों को प्रसिद्ध हुआ देख रहे हैं वह अपनी लिखी पोस्टों के साथ इन कमेंटों के कारण भी हैं। हमने अपने अहं के कारण नहीं किया तो आजतक फ्लॉप हैं। आपने किसी अखबार में हमारा नाम ब्लोगर के रूप में नहीं पढा होगा।
मैंने कुछ ऐसे ब्लोगर भी देखे जो गजब का लिखते हैं पर मुझे ताज्जुब हुआ कि उनका नाम चर्चा में नहीं आता क्योंकि अपने आप में मस्त रहने के कारण वह कहीं अधिक कमेन्ट नहीं लगाते. उन्हें मैं भी तब पढ़ पाया जब उनका ब्लोग फोरमों पर मेरे सामने आ गया. तब मुझे यह लगा कि वाकई कमेन्ट लगाना भी मशहूर कराने में सहायक हो सकता है.

Wednesday, January 2, 2008

मोबाइल पर बात, मोबाइल की बात

मैं और मेरा मित्र दोनों उस चाय की दुकान पर बैठकर चाय पी रहे थे, और हमारे पीछे पांच लोग बैठकर आपस में बातें कर रहे थे

''सुन यह आईपोट जो है बहुत काम का है, इससे फोटो ली जा सकती है, और फिर कंप्यूटर में उसे लोड किया जा सकता है।'' एक बोला।

दूसरा बोला-''देखा जाये तो मोबाइल तो सस्ता रखना चाहिए इसे खरीद लिया जाये, यह तो काफी उपयोग की चीज है।''

फिर शुरू हुआ उनके बीच मोबाइल और उनकी कंपनियों की बातचीत का दौर। 'अमुक कंपनी की स्कीम सही है', अमुक कंपनी से यह फायदा है और यह नहीं है'।
मैं और मेरा मित्र वहाँ आधे घंटे बैठे रहे और उनकी बात सुनते रहे। इस दौरान वह लड़के अपनी मोबाइल पर कभी बात करते और कभी उसे ऐसे ही दबाकर एक दूसरे को दिखाते। चाय पीने के बाद हम दोनों उठकर चाय वाले को पैसे देकर उनके पास से गुजरे तो उनमे से एक मेरी हाथ की तरफ बंधी घड़ी की तरफ इशारा करते बोला-''आपकी घड़ी में समय कितना हुआ है?''
मैंने अपनी घड़ी में देखने की बजाय जेब से मोबाइल निकाला और उसे देखकर कहा-''एक बजकर पैंतालीस मिनट'।
दूसरा बोला-''क्या आपकी घड़ी बंद है जो मोबाइल पर देखकर बताया।''
मैंने कहा-''जब से मोबाइल लिया है तब से घड़ी में समय देखने की आदत तो चली गयी है पर हाथ में घड़ी पहनने की आदत नहीं गयी है। ''
हम दोनों वहा से निकल गए तो पीछे से एक को कहते सुना-''यार, हम भी तो अपनी मोबाइल पर समय देख सकते थे।''

थोडा दूर चलकर मेरा मित्र बोला-''यार, उनको घड़ी देखकर ही समय बता दिया होता, जेब से मोबाइल निकालकर समय बताने की क्या जरूरत थी।''

मैंने कहा-''उनको यह बताने के लिए की इस दुनिया में वही अकेले मूर्ख नहीं है बल्कि और भी हैं। पिछले आधे घंटे से मोबाइल के विषय पर बात तो ऐसे कर रहे थे जैसे कि उन्हें सारी अक्ल है।''
इस देश में हर आदमी को एक न एक विषय चाहिए बात करने के लिए। पहले फिल्म पर बातचीत होती थी फिर टीवी एक विषय हो गया। अब जिसके पास बैठो वही मोबाइल लिए बैठा उस बात कर रहा है या हाथ में पकडे उसकी उपयोगिता बता रहा है। मतलब के सुविधा के लिए बनी चीज जिन्दगी बना लेते हैं।मोबाइल मेरे पास भी है पर वह मैंने अपने कुछ मित्रों के दबाव में लिया था पर उसका अनावश्यक उपयोग करना या दिखावा करना मुझे पसंद नहीं। जब मैं उन लड़कों की बात सुन रहा था तो लग रहा था कि मोबाइल कंपनियों के लिए मुफ्त में माडलिंग कर रहे हैं। इसलिए उन्हें इस तरह जवाब देने में मुझे मजा भी आया।

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