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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, February 12, 2009

प्रचार का नया नुस्खा-व्यंग्य कविता

चर्चा के लिये रोज नये विषय
वह बाजार में ला रहे हैं।
शायद मंदी से मरते व्यापार को
संजीवनी मिल जाये
इसलिये झगड़ों में तौहफे की
परंपरा चला रहे हैं।
लोग पहने या ओढ़ें नहीं
बस नारों में बह जायें
इसलिये कहीं से तारीफ खरीदते तो
कहीं अपने उत्पाद के लिये विरोध सजाते
बाजार बहुत है ताकतवर
प्रचार का यह नया नुस्खा है कि
जाति, धर्म,भाषा और लिंग के आधार पर
उत्पादों को बहस के लिये वह मुद्दा बना रहे हैं।

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