‘दीपक बापू, तुम्हारे हिट होने के मिली गयी चाभी
तुम भी बना लो कोई व्यंग्य पात्र
जिसके नाम के साथ जोड़ दो भाभी।
गारंटी है हमारी, तुम्हारे फ्लाप होने का
सिलसिला भी टूट जायेगा
हर विरोधी सामने से फूट जायेगा
देखो प्रतिबंधित हो गयी एक वेबसाईट
जिसकी नायिका थी कोई कल्पित भाभी
लोग उसे अब अधिक ढूंढ रहे हैं
नाम लेकर लिख लिखकर कंप्यूटर पर कूद रहे हैं
तुम अपना ब्लाग भी पहुंचा दो
हिट का ताला खोलने वाली यही है एक चाभी।
सुनकर पहले चौंके
फिर अपना पसीना पौंछते कहें बोले दीपक बापू
‘कमबख्त इंटरेनेट पर कोई नाम हिट नहीं होता
बूढ़े हों या जवान ‘सेक्स’ शब्द डालकर
लगाते हैं यौन साहित्य के अथाह समुद्र में गोता।
अपनी आंखें फोड़ते रहेंगे
अपने ही शरीर का रस जलाकर
किससे शिकायत करेंगे
नाम कोई भी हो
घरवाली शब्द हिट नहीं दिला सकता
साली लिखो तभी कोई जाल में फंसता
जेठ को हिट नहीं बना सकती भाभी
देवर ही उसके यौन साहित्य की है एक चाभी।
तुमने आने में कर दी है देरी
हम लगा चुके भाभी साहित्य घर की फेरी।
मिल भी गये हिट वहां तो
हमारे किस काम आयेगा
हम ठहरे फोकटिया, धेला भी हाथ नहीं आयेगा।
फिर सोचो
आदमी कब तक उस श्रृंगार रस से चिपका रहेगा
कभी तो अति होने की बात कहेगा
फिर हास्य रस की तरफ आयेगा
फंदेबाज, सच कहें तो
तुमने इतने हिट दिला दिये हैं
उन पर ही हमें नाज है
तुम्हारे सामने पहली बार खोला यह राज है
इससे अधिक क्या कहें
नहीं भज सकते अब साली और भाभी।
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1 comment:
bahut achha !
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