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Friday, August 28, 2009

सदाबहार समाजसेवक-हिंदी हास्य कविता (sadabahar samajsevak-hindi hasya kavita)

बरसात की बूंदें जैसे ही
आकाश से जमीन पर आई।
अकाल राहत सहायता समिति के
सदस्यों के चेहरे पर चिंता घिर आई।
पहुंचे सभी अध्यक्ष के पास
और वहां अपनी बैठक जमाई।
एक बोला अध्यक्ष से
‘अध्यक्ष जी यह क्या हुआ?
हमने तो अपने घर के सामान
खरीदने का सोचा था
आखिर अकाल का लोचा था
अब यह क्या हुआ
अकाल का नारा लगाकर कर
हम चिल्ला रहे थे
इधर उधर चंदे के लिये
फोन मिला रहे थे
अब क्या होगा
मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बिना
यह बरसात कैसे आई?
अब कैसे होगी कमाई?’

अध्यक्ष ने हंसते हुए कहा
‘क्यों परवाह करते हो
जब तक मैं अध्यक्ष हूं भाई।
अब भला चंदा मांगने
घर घर क्या जाना
अब तो इंटरनेट का है जमाना
मैंने तो तीन महीने पहले ही
जब बरसात न होने का सुना
अपनी संस्था के लिये
इंटरनेट पर चंदा मांगने का प्लान चुना
दरियादिलों ने बहुत सारा माल दिया
भले ही जितना मांगा उससे कम दाना डाल दिया
अपने हिस्से का चेक तुम ले जाओ
अब बाढ़ होने के लिये
सर्वशक्तिमान के दरबार में गुहार लगाओ
अपनी समिति का नाम
अकाल राहत की जगह
बाढ़ पीड़ित सहायता समिति दिखाओ
हम तो सदाबाहर समाजसेवक हैं
अरे, मैंने यह समिति ऐसे ही नहीं बनाई।

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