इसलिये उड़ते जाते हैं।
जमीन पर पांव रखना
उन्हें गवारा नहीं इसलिये
उड़ने के लिये लड़े जाते हैं।
दौलतमंदों के प्यादे बनना उनको मंजूर है
पर गरीब का वजीर होने पर भी शर्माते हैं।
लफ्जों का ढेर बेचने बैठे हैं
कोई चाहे तो ईमान भी उपहार में ले जायें
पैसे की खातिर किताबें सजाये जाते हैं।
यह दुनियावी खेल है
आदमी अपने ख्याल क्या खुद
बिकने को तैयार बैठा है
खरीददार के इंतजार में पलकें पसारे जाते हैं।
नामा हो तो लोग नाम बदल दें
मशहूरी के लिये हंगामा हो तो
अपना काम बदल दें
दौलतमंदों का काम है ईमान से खेलना
बेईमानों का काम है सामान बेचना
अक्लमंदों की अक्ल जब तुलती हो
कौड़ियों के दाम में
तब लफ्जों के सौदे पर
भला क्यों शोर मचाये जाते हैं।
झूठ के पांव नहीं पर पंख होते हैं
जमीन पर न चले पर
आसमान में लोग उसे खूब उड़ाये जाते हैं।
सच तो खड़ा रहेगा अपनी जगह
फिर उसकी चिंता में दिमाग क्यों खपाये जाते हैं।
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