उनको सोने की दीवारों का
सहारा मिला
हम ताश के पतों की तरह ढह गये।
अब गुजरते हैं जब उस राह से
यादें सामने आ जाती हैं
कभी अपनो की तरह देखने वाली आंखें
परायों की तरह ताकती हैं
रिश्ते समय की धारा में यूं ही बह गये।
जुबां से निकलते नहीं शब्द उनके
पर इशारे हमेशा बहुत कुछ कह गये।
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3 comments:
दीपक जी
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
दीपक जी
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
सुन्दर भावपूर्ण रचना|
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