‘‘मोबाईल पर इतनी बात मत करो
मैं नहीं उठा सकता खर्चा
हर हफ्ते कपड़े भी न मांगो
रोज होटल में खाने की जिद छोड़ दो
मोटर साइकिल पर
इतनी सवारी करना मुश्किल है
पैट्रोल हो गया है महंगा
मेरे वेतन में भी हो गयी कटौती
अब शादी कर लेते हैं तो
कई समस्याओं से बच जायेंगे
क्योंकि मंदी की पड़ी रही है मुझ पर छाया।‘’
हाथ पकड़ कर साथ चल रही
माशुका ने तत्काल उसे छुड़ाया।
और गुस्से में बोली
‘‘अखबारे में मैंने पढ़ा था
सब जगह है मंदी
पर इश्क पर नहीं पड़ी इसकी छाया।
लगता है तुम अब कंजूस बन रहे हो
तुम्हें देखकर नहीं लगता कि
मंदी के जुर्म सहे हो
कहीं तुमने शादी करने के लिये
उसका बहाना तो नहीं बनाया।
अभी तो हमारे खेलने खाने के दिन है
जब अभी इश्क में खर्चा नहीं उठा सकते तो
शादी के बाद क्या कहर बरपाओगे
घर का काम भी मुझसे ही करवाओगे
इसलिये अगर वाकई मंदी है तो
फिर शादी ही नहीं इश्क को भी भूल जाओ
बस मंदी का दुःखड़ा गाओ
जब बढ़ जाये वेतन तब शादी के सोचना
उससे पहले कोई मिल गया मुझे साथी
तो अपने बाल नोचना
अब मेरा मूड खराब है
जब तेजी आये तब मेरे पास आना
अब न करो मेरा और अपना वक्त जाया।’’
-----------
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप
‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’
No comments:
Post a Comment