क्रिकेट खेल एक शुद्ध रूप से ऐसा व्यवसाय है जिसमें प्रायोजित रूप से सनसनी, हास्य और गंभीरता प्रस्तुत की जाती है। ऐसा व्यवसाय जो यहां एक नंबर तथा दो नंबर दोनों में सक्रिय लोगों को भारी पैसा और प्रतिष्ठा प्रदान कर रहा है। देश के सारे प्रचार माध्यम यह बात लगातार कह रहे हैं कि आजकल देश में क्रिकेट का मौसम चल रहा है। पता नहीं घोटालों और महंगाई का मौसम कहां चला गया? अब प्रचार माध्यमों को अब देश में केवल क्रिकेट पर नाचते हुए लोग ही दिख रहे हैं महंगाई में पिस रहे ओर घोटालों में अपना दिमाग घिस रहे आम इंसान की परवाह नहीं है।
अभी हाल ही में क्रिकेट एक बीता हुआ समय लग रहा था पर प्रचार माध्यमों ने अपनी कमाई के लिये तमाम तरह के सनसनीखेज प्रसंग और फिल्मी अभिनेता अभिनेत्रियों का आकर्षण इसमें जोड़कर इसे जिंदा रखा। मुंबइया फिल्मों की एक नवोदित अभिनेत्री का भारत के दो दो खिलाड़ियों से इश्क का प्रपंच रचवाया तो फिर अपने ही देश किक्रेट खिलाड़ी पर फिक्सिंग का आरोप लगाने वाली एक पाकिस्तानी अभिनेत्री को बिग बॉस कार्यक्रम में बुलवाया। इससे एक बात तो तय हो गयी है कि क्रिकेट और मनोरंजन क्षेत्र में काले चरित्र और सफेद चेहरे वालों का कोई संयुक्त उपक्रम है जो देश विदेश की सीमाओं को नहीं जानते या भूल गये हैं। हमें तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को जानबूझकर उनके ही जाल में फंसाया गया ताकि भारत में होने वाली विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता के सभी मैच साफ सुथरा होने का प्रचार किया जा सके। फिर उसमें शामिल एक पाकिस्तानी खिलाड़ी की पूर्व प्रेमिका से अपने प्रेमी पर लगे आरोप की पुष्टि कराई गयी। यह संभव नहीं है कि पाकिस्तानी क्रिकेट के खिलाड़ी से पंगा ले चुके किसी आदमी को भारतीय मनोरंजन क्षेत्र में प्रवेश मिल सके। इधर भारतीय मनोरंजन क्षेत्र में कार्यक्रम भी पिट रहे हैं तो उस बदनाम पाक अभिनेत्री वीना मलिक को पहले बदनाम क्रिकेटर पर प्रचारात्मक हमला कर उसे एक नायिका के रूप मशहूर किया गया और फिर उसे बिग बॉस कार्यक्रम में उसकी छबि को भुनाया गया।
वह कार्यक्रम ं निपट गया तो वह चली गयी। मगर फिर आया है बिग टॉस का कार्यक्रम! क्रिकेट के टॉस पर बहस के लिये उसे लाया गया। ऐसे ही एक कार्यक्रम में भारत के कथित युवराज के पिता को उसके सामने खड़ा किया। निहायत फालतु कार्यक्रम देखकर यही बात समझ में आयी कि वीना मलिक को भारत में स्थापित करने के लिये कहीं अपने आकाओं को नाराज कर चुके पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को रंगहाथों फंसाया गया ताकि वह इसमें वीना मलिक िअपने बयान देकर मशहूर हो सके जिसका नकदीकरण भारतीय मनोरंजन क्षेत्र को उसका नकदीकरण करने में सुविधा हो।
इधर प्रचार माध्यम कभी इंग्लैंड की क्रिकेट टीम की बीसीसीआई की-कथित रूप से इंडिया की टीम जिसे भारतीय टीम कहते हुए प्रचार माध्यमों की जुबां चलती ही नहीं-टीम के विरुद्ध रची गयी गुप्त योजना का पर्दाफाश करते हैं तो कभी सचिन को एक एक रन बनाने के लिये बाध्यकर उन्हें थकाने के बंग्लादेश के गुप्त षडयंत्र का उद्घाटन करते हैं। देश को किस तरह मनोरंजन और खेलों के माध्यम से बंधुआ बनाने की कोई योजना है और उस पर अमल हो रहा है। हो सकता है यह सच न हो पर क्या प्रचार माध्यम कभी अपनी विषय सामग्री को प्रसारित करते हुए इस बात का विचार करते हैं कि वह किसके एजेंडे पर काम कर रहे हैं? क्या ऐसी कोई योजना है इसकी जानकारी लेने का प्रयास किसी बुद्धिमान ने नहीं किया। अंग्रेजी के सहारे अपनी नैया पार होने की आशा रखते हुए उसे अपनी घर की स्वामिनी और हिन्दी को केवल खाना परोसने वाली बाई समझते हैं। आप देखिए हिन्दी फिल्म पुरस्कार वितरण समारोहों की भाषा! सम्मानित कलाकर हिन्दी बोलने में कतराते हैं। एक अभिनेत्री तो ऐसी है जो इंग्लैंड में बचपन से रही है। उसे हिन्दी नहीं आती पर फिल्मों में नंबर वन पर है तो विज्ञापन भी उसे बहुत मिलते हैं। इससे एक बात साफ है कि हमारे समाज के धनपति यहां के लोगों केवल धन कमा रहे हैं और अपने व्यवसायिक विस्तार तथा सुरक्षा के लिये वह असामाजिक लोगों के साथ ही विदेशी तत्वों पर निर्भर है। जिनसे कमा रहे हैं और आगे भी कमाना है उस पर भरोसा नहीं है।
हैरानी होती है यह देखकर कि हमारे समाज के शिखर पुरुष अभी तक समाज कल्याण, निचले तबकों का उत्थान तथा स्त्रियों के उद्धार के नारे बेचकर अपना काम चलाते रहे और अब देशभक्ति के जज़्बात भी बेचने लगे हैं। जब प्रचार माध्यम क्रिकेट में देशभक्ति की बात करते हैं तब उसे देख और सुनकर यही बात समझ में आती है। इस पर हंसी आती है। ऐसे में एक सवाल मन में आता है कि उनको क्या इस बात का आभास है कि लोग अब उनपर हंसते हैं क्योंकि उनका यह राजफाश हो चुका है वह केवल धन कमाने के लिये ही यह सब कर रहे है।
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