गर्मी पहले ही चढ़ गयी हैं,
मगर फिर भी लोग मनाकर जश्न
बसंत पंचमी का अहसास करायेंगे।
भूखे हैं पर कत्ल नहीं करते,
गरीब हैं पर भीख नहीं मांगते,
लोग अपनी खुशी यूं ही मनायेंगे।
लुटेरों के घर पहरे हैं
हुक्मरान बहरे हैं,
दान लूटकर कमीशन बता लिया,
किया व्यापार, कल्याण जता दिया,
आम इंसान लुटते रहे,
घुटते रहे,
फिर भी यह भारत की धरती है
जहां कभी सूख बरसाता कहर
तो कभी बसंत बरसती है,
यहां आग के देवता का डेरा है,
जलदेवता का भी बसेरा है,
हताशा के मौसम में भी
खून की नदियां बहते न देखकर
बुद्धिमान होते हैं निराश
हैरान है दुनियां
बसंत पंचमी में गरीबों के भी
मन खुशी के अहसास से लहरायेंगे।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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