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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, December 12, 2011

दीपक बापू कहिन ने पार की तीन लाख पाठक संख्या-हिन्दी संपादकीय

            दीपक भारतदीप समूह के दीपक बापू कहिन ब्लॉग/पत्रिका ने तीन लाख की पाठक/पाठ पठन संख्या पार कर ली है। यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है पर जब देश में भाषा का तोतलीकरण-अंग्रेजी शब्दों की मिलावट-हो रहा हो और आधुनिक शिक्षा से ओतप्रोत नयी पीढ़ी सहज हिन्दी को बोध से विरक्त हो रही हो तब हम जैसे फोकटिया लेखकों के लिये इतना ही बहुत है कि उनके ब्लॉग अपनी विषय सामग्री के दम पर कुछ पाठक जुटा लेते हैं। यह सही है कि हिन्दी जगत में इस लेखक का नाम कोई चर्चित हस्ताक्षर नहीं है पर इससे लिखने समय जो बेपरवाही होती है वह ऐसी रचनाओं के सृजन में सहायक होती है जिसको चुराकर लोग छापना चाहते हैं।
             जिस तरह देश को आधुनिक बनाने के नाम पर अंग्रेजी पद्धति थोपी गयी उससे बेरोजगारों की फौज बनती जा रही है। उसी तरह अब हिन्दी भाषा में अंग्रेजी शब्द जोड़कर उसका तोतलीकरण हो रहा है। हमारे देश के मध्यम वर्ग के लोगों में विकास के नाम पर केवल अधिक से अधिक धन संपदा सृजन करते रहने का स्थाई भाव है। अधिक से अधिक सुविधा जुटाने की ललक पूरे समाज में है। सबसे बड़ी बात यह है कि बहुत कुछ कमाकर आराम से जिंदगी गुजारने का लक्ष्य है। इसमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है। मुश्किल यह है कि एक तो लोग आराम करना नहीं जानते दूसरी बात यह कि हमारी जो पंचतत्वों से बनी यह देह है उसमें मन, बुद्धि और अहंकार जैसी तीन प्रकृतियां हैं वह ऐसा नाच नचाती हैं कि विरले ज्ञानी ही उसके दुष्प्रभाव से बच पाते हैं। अगर किसी आदमी को ंसंगमरमर से बनी इमारत में बहुत दिन से रहना पड़े तो उसका मन गांव घूमने का करता है। जो गांव में है वह महल चाहता है। इस अंतर्द्वंद्व में फंसा आदमी इधर से उधर भटकता है। बदलते परिवेश में छोटा निजी व्यवसाय या नौकरी करना छोटे होने का प्रमाण बन गया है। इसलिये हमारा सभ्य समाज अपने लड़के लड़कियों के लिये विदेशों में नौकरी ढूंढ रहा है। पहले अंग्र्रेजी जरूरी जा रही थी तो अब उसे हिंन्दी में मिलाकर हिंगलिश बनाया जा रहा है। सभी को विदेश जगह नहीं मिलेगी और जो देश में बच गये वह यहां किस तरह गांव या मध्यवर्गीय शहर में काम करेंगे क्योंकि उनकी भाषा तो तोतली हो गयी होगी।
          लोगों की अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बड़े सपने होते हैं जो अपने शहर में पूरे नहीं होते। इसलिये वह उनको बाहर भेजकर स्वयं अकेले रहना मंजूर कर लेते हैं। यह एकाकीपन अंततः उनके लिये असहनीय होता है। दूर रहते बच्चों पर आक्षेप आता है कि वह माता पिता को देखने नहीं आते। जब संस्कृति और संस्कार की बात हो तो प्राचीन बातें करते हुए सब खुश होते हैं, पर जब स्तर की बात हो तो अपने बच्चों को विदेश या परे दूसरे शहर में रहने के लिये स्वयं तैयार करने वाले दंपत्तियों का यह अंतद्वंद्व समाज में देखा जा सकता है। लब्बोलुआब यह कि खेल रही है माया और आदमी सोच रहा है कि मैं खेल रहा हूं।
       हम जब प्राचीन संस्कारों की बात करते हैं तो यह बात भी देखना चाहिए कि तब व्यवसाय और रहन सहन सहज था। अपने लोग अपनों के पास होते थे। अब विकास के नाम पर हमने जो मार्ग अपनाया है उसमें कथित रूप से संस्कारों की बात तो करना ही नहीं चाहिए। फिर भी लोग कर रहे हैं। ऐसे में व्यंग्य के लिये विषयों की कमी नहीं होती। लोग अपने सिर का बोझ दूसरे पर डालना चाहते हैं पर स्वयं किसी का बोझ उठाने को तैयार नहीं है। एक समृद्ध, संस्कारवान तथा प्रतिष्ठत परिवार का मुखिया होने का मोह आदमी को अंततः ऐसे संकट में डालता है जहां से उबरना सभी के बूते की बात नहीं होती।
        ऐसे में हम जैसे लोग उन गुरुओं का स्मरण करते हुए प्रसन्न होते हैं जिन्होंने तत्वज्ञान दिया है। इस नश्वर देह को लेकर जिस तरह लोग नाटकबाजी करते हुए उसे बर्बाद करते हैं उसे देखकर ज्ञानी लोग दुःखी होते हैं पर मुश्किल यह है कि अपने भौतिक शक्ति केंद्रों पर मजबूती से जमे आदमियों को यह बात समझाना मुश्किल ही नहीं खतरनाक भी होता है। आज ही रहीम के दोहे पर लेख लिखा था। उसका आशय यह था कि सच है तो संसार साथ नहीं है और झूठ है तो राम नहीं मिलते। ऐसे में यहां कुछ पैसा नही भी मिलने पर इस बात की प्रसन्नता होती है कि कबीर, रहीम, तुलसी, चाणक्य, विदुर तथा अन्य विद्वानों के संदेश और उन पर व्याख्यान लिखते हुए जो ज्ञान प्राप्त हो रहा है वह अनमोल है। लोग लाखों कमाते हैं पर ज्ञान तो विरलों को ही मिल पाता है। सच बात तो यह है कि ब्लॉग हमारे गुरु हो रहे हैं।
दीपक बापू ब्लॉग के तीन लाख पाठक/पाठ पठन संख्या पार करने पर पाठकों, मित्र ब्लॉग लेखकों तथा अंतर्जाल पर सक्रिय अज्ञात हिन्दी विशेषज्ञों का आभार। हिन्दी विशेषज्ञों को इसलिये आभार जता रहे हैं कि क्योंकि उनकी वजह से ही अनेक टूल लिखने के लिये मिले हैं।
संपादक और लेखक
दीपक भारतदीप
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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