अन्ना हजारे साहब फिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने आंदोलन की तीसरा चरण शुरु करने वाले हैं। वह एक दिन के लिये अनशन पर बैठेंगे और इस बार भ्रष्टाचार के विरुद्ध शहीद होने वाले लोगों के परिवार जन भी उनके साथ होंगे। ऐसे में देश के लोगों की हार्दिक संवेदनाऐं उनके साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ेंगी जिसकी इस समय धीमे पड़ रहे इस आंदोलन को सबसे अधिक आवश्यकता है । अन्ना हजारे के समर्थकों ने इस बार भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत करने वालों को संरक्षण देने के लिये भी कानून बनाने की मांग का मामला उठाया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विषयवस्तु की दृष्टि से उनके विचारों में कोई दोष नहीं है। वैसे भी उन्होंने जब जब जो मुद्दे उठाये हैं उनको चुनौती देना अपनी निष्पक्ष विचार दृष्टि तथा विवेक का अभाव प्रदर्शित करना ही होगा।
मूल बात यह है कि अन्ना हज़ारे के आंदोलन की गति कभी मंथर, कभी मध्यम तो कभी तीव्र होने की स्थिति आम निष्पक्ष तथा स्वतंत्र विश्लेषकों के लिये विचार का विषय बनती रही है। अन्ना हजारे और उनके समर्थक कहीं न कहीं से प्रायोजित हैं यह आरोप तो बहुत पहले से ही उसके विरोधी लगाते हैं पर मौलिक तथा असंगठित क्षेत्र के आम लेखक भी यह प्रश्न उठाते हैं कि आखिर उनकी गतिविधियों के लिये धन कहां से आ रहा है? अन्ना बड़ी आयु के हैं और उनका स्वास्थ्य खराब रहना स्वाभाविक है पर उनके इलाज का समय और स्थान अनेक तरह के प्रश्नों को जन्म देते हैं। जब प्रायोजन की बात भी जब सामने हो तब आंदोलन की गति तथा गतिविधियों दोनों की अनेक प्रश्नों को जन्म देती हैं। हमारे लेखों पर अनेक लोगों ने आपत्तियां की हैं। हम जब यह लिखते हैं कि यह आंदोलन भी बाज़ार के सौदागरों के धन तथा प्रचार समूहों के प्रबंधकों के सहारे चल रहा है जो जनता के असंतोष को भटकाने के लिये चलाया जा रहा है क्योंकि वह कभी लक्ष्य के पास जाता नहीं दिखता तो अनेक पाठक प्रतिकूल टिप्पणियां लिखते हैं। हमने पहले भी लिखा था कि पांच राज्यों के चुनाव के कारण प्रचार माध्यमों के पास विज्ञापन के लिये प्रस्तुत करने के लिये इन चुनावों के समय ढेर सारी सामग्री मिल रही थी। ऐसे में अन्ना हजारे के आंदोलन पर समाचार और चर्चा के लिये उनके पास समय नहीं था। इसलिये यह आंदोलन ठंडे बस्ते में चला गया या डाल दिया गया वह अलग से विचार का विषय है।
अब स्कूलों में छुट्टियां होती जा रही हैं। गर्मी का समय है। क्रिकेट का भी कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे में इस आंदोलन को रंगा जा रहा है। निश्चित रूप से टीवी चैनलों पर भीड़ बनाये रखने में यह सहायक होगा।
हम जैसे आम लेखकों पास न तो साधन होता है न समय कि कहीं से खबरें निकालें न ही यह सामर्थ्य होता है कि बड़े लोगों से गोपनीय चर्चा कर यहां कोई संकेत दें। पर कहते हैं न कि भगवान एक मार्ग बंद रखता है तो दूसरा खोल देता है। हमें उसने दैहिक तथा भौतिक रूप से इतना सामर्थ्यवान नहीं बनाया कि हम बड़े बड़े लोगों में उठ बैठकर बड़े मंचों पर चर्चा कर सकें पर उसने बौद्धिक रूप से चिंत्तन क्षमता को इतना सक्रिय कर दिया है कि सामने से आ रही खबरों के आगे पीछे अपनी दृष्टि रखकर उनके निष्कर्ष निकाल ही लेते हैं। हमारे अनुमान बाद में सही निकलते हैं इसलिये यह आत्मविश्वास ब्लॉगों पर लिखते हुए तो हो गया है कि अपनी बात लिखते हुए अब डर नहीं लगता। हमने बहुत पहले लिखा था कि यह यह आंदोलन प्रायोजित है, उस समय अनेक लोगों ने इस पर नाराजगी जताई पर हम देख रहे हैं बाद में अनेक इंटरनेट लेखक इसे स्वीकारने लगे। बहरहाल हमारे विचार और प्रयासों का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर कोई निर्णायक प्रभाव नहीं पड़ता यह बात दिल को तसल्ली देती है । देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन सफल हो यह तो हम भी कहते हैं इसलिये आंदोंलन की सक्रियता के लिये हम बाधक नहीं कहलाते वहीं अपनी बात भी कह जाते हैं। अलबत्ता हमें इसके परिणामों में बहुत दिलचस्पी है। देखें आगे क्या होता है?
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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