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Wednesday, December 26, 2012

अपनी दवा खुद ढूंढ लेते हैं-कविता (apni dawa khud dhoondh lete hain-kavita)

बेदर्द लोग बेच रहे हैं
दर्द दूर करने की दवा,
बहारें लाने का भरोसा
दिखाकर लूट रहे वह लोग वाह वाह
रोके बैठे हैं जो बहती हुई हवा।
कहें दीपक बापू
मन में अंधेरा हैं जिनके  
ज्ञान का दीपक
जगह जगह जला रहे हैं पाखंडी,
बेच दिया ईमान जिन्होंने कौड़ियों के भाव
आदर्श की लगा रहे वही मंडी,
चेहरे चमका लिये हैं नायकों ने
झगड़ रहे हैं इस बात पर
कौन लुटेरा नंबर एक है
कौन बेईमानी में सबसे सवा।
छोड़ दिया है मशहूर लोगों की
बताई राह पर चलना
अपने दिल और दिमाग के दर्द  की
खुद ही ढूंढ  लेते हैं खुश होकर दवा।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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