आजकल हम देख रहे हैं कि समाज में लोगों के
आपसी विवादों में एक दूसरे का कत्ल तक हो जाता है। खासतौर से महिलाओं पर आक्रमण इतने अधिक हो गये
हैं कि उनकी सुरक्षा को लेकर तमाम तरह की चर्चायें और बहसे होती दिखती हैं पर उनका
निष्कर्ष निकलता नहीं दिखता। एक बात सीधी कहें कि पुरुष हो या स्त्री उसकी सुरक्षा अपने ही हाथ में ही है। हमने देखा है कि अनेक जगह युवतियों पर उनसे
प्रणय निवेदन अस्वीकार होने पर अनेक निम्न प्रवृत्ति के युवक हमला कर बैठते हैं।
देखा जाये तो यह हमला अचानक नहीं होता पर जब किसी का किसी लड़की ने प्रणय निवेदन
अस्वीकार कर ही दिया है तो उसे फिर लड़के से सतर्क ही रहना चाहिये। सभी लड़के
आक्रामक नहीं होते पर यह इश्क मुश्क का चक्कर ऐसा है कि किसी पर यकीन करना भी कठिन
है। यही स्थिति सभ्य युवकों की भी है।
आचार, विचार तथा व्यवहार में
असंतुष्ट होने पर उनके लिये मित्रों से ही खतरा बढ़ जाता है।
जब यह अनुमान हो जाये कि कोई मनुष्य हमारे
लिये खलपात्र बन सकता है तो उसका उपचार यह है कि पहले ही उसे दंडित करने की
प्रक्रिया प्रारंभ कर दें अथवा राह में सतर्क होकर चलें कि वह कभी भी हमला कर सकता
है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि--------------खलानां कण्टकानां द्विविधैव प्रतिक्रिया।उपानंमुखभङ्गो वा दूरतो या विसर्जनम्।।हिन्दी में भावार्थ-दृष्ट तथा कांटों से निपटने की दो ही क्रियायें है एक तो उनके मुख पर आक्रमण कर उसे कुचल दें अथवा उनसे दूर होकर निकलें।
वर्तमान समय में लोगों के अंदर सहिष्णुता का
भाव कम हो गया है। संवेदनशीलता शून्य के
स्तर पर पहुंच गयी है। ऐसे में दिल से
नहीं दिमाग से काम लेते हुए सतर्कता बरतना ही चाहिये। कहते हैं कि जो डरता है वह
क्रूरता दिखाता है। पीछे से हमला करने वाला कभ बहादुर नहीं होता। न ही अपराधिक रूप
से दूसरे को सताने वाला वीर होता है। हम यह मानकर चले कि हमारे समाज में वीरता की
कमी आ गयी है और कायरों से कभी दया की आशा करना ही नहीं चाहिये। पीठ पीछे असावधान
अवस्था में हमला करने वालों से किसी भी धर्म भावना दिखाने की आशा करना व्यर्थ ही
है। किसी से शत्रता हो या नहीं पर सतर्कता
हमेशा ही रखना चाहिये।
देह में हमेशा ही किसी दूसरे के आक्रमण का
सामना करने की शक्ति का संग्रह करना ही आवश्यक है। इसके लिये प्रतिदिन योग साधना
और ध्यान करने की साथ ही ओम का जाप करें।
अध्यात्मिक रूप से संपन्न स्त्री पुरुष के विरुद्ध किसी भी षड्यंत्रकारी को
सहजता से सफलता नहीं मिलती। योग साधना
करने से जो अध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है उसका अभ्यास करने पर ही अनुभव हो
सकता है। हम बहसों और चर्चाओं में कथित पाश्चत्य संस्कृति समर्थक विद्वानों से
समाज में विचार बदलाव का संदेश सुनते हैं। यह व्यर्थ है इसलिये जहां तक हो सके
भारतीय योग पद्धति का अनुसरण कर स्वयं को शक्तिशाली बनायें। दूसरे बदलें या नहीं
हमें अपने अंदर बदलाव लाकर आक्रमण का प्रतिकार करने की शक्ति अर्जित करना चाहिये।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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