अंतर्जाल पर इस बात पर विवाद छिड़ा हुआ है कि दिल्ली दुष्कर्म के अपराधी पर
वृत्त चित्र के प्रसारण के बाद कहीं सभ्रांत व्यवस्था से नाराजगी की वजह से ही
दीमापुर नागालैंड में तो कहीं ऐसे ही कर्म के कथित आरोपी को भीड़ ने केंद्रीय जेल से निकालकर तो नहीं मार डाला।
हम इस बात का न तो इस विचार का समर्थन कर रहे हैं न ही विरोध मगर जिस तरह फिल्म, टीवी तथा समाचार पत्रों की विषय सामग्री का प्रभाव समाज पर पड़ता है उसे
देखकर तो यह लगता है कि किसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
हमने तो यह भी देखा है कि सन् पचहतर से से दो हजार तक मुबईया फिल्मों में
एंग्री यंगमेन छवि का प्रचार हुआ था उसे समाज का मनोरंजन जरूर हुआ पर लोगों में
कहीं कायरता का भाव भी घर करता चला गया।
इन फिल्मों में कहीं किसी लड़की के साथ अभद्र व्यवहार होता दिखाया जाता था
जिसमें भीड़ खड़ी देखती थी और कोई नायक आकर ही उसे बचाता था। उससे भी बढ़ी चीज यह कि कोई फिल्मी पुलिस या
सामान्य पात्र खलनायकों से पंगा लेता तो उसकी बहिन, बेटी या
प्रेमिका की दुर्गति दिखाई जाती थी। सीधी
बात कहें तो उस समय जो अपराध केवल महानगरीय संस्कृति भाग थे वह पूरे देश में होते
दिखे। हम कहते हैं कि फिल्मों ने अपराधों का देशव्यापीकरण किया पर यह आग्रह नहीं
है कि सभी इस तर्क को माने।
मनुष्य के मन का विज्ञान हर कोई नहीं जानता-इसमें पारंगत होने के लिये
श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करना श्रेयस्कर हो सकता है। आंतरिक भावों का निर्माण
कब किस तरह हो जाये पता नहीं। इतना तय है
कि मनुष्य अपने मन का ही गुलाम होता है। इसलिये किसी प्रेरणा के कारणों को न तो
मान्य किया जा सकता है न खारिज। दिल्ली से
लंदन और फिर दीमापुर मनुष्य मन की यात्रा कैसे हो जाये पता नहीं। इस पर तो अनुमान ही लगाये जा सकते हैं। बहरहाल इसी विषय पर पहली रचना भी ठीक इसी क्रम में है।
http://aajtak-patrika.blogspot.in/2015/03/navin-aur-prachin-samajik-siddhanton-ka.html
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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