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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, December 17, 2015

रक्त जलाने वाले भोग-हिन्दी कविता(Rakt jalane wale Bhog-Hindi Kavita)

सर्वशक्तिमान के दरबार में
ढोल बजाकर भी
चैन नहीं पाते लोग।

पंचसितारा अस्पतालों की
परिक्रमा करते हुए भी
पीछा नहीं छोड़ते रोग।

कहें दीपकबापू एकांत में
साधना का तरीका
जानते नहीं
ज्ञान से संबंध मानते नहीं
महलों में रक्त जलाने वाले
ढूंढते नित नये भोग।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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