सौदे की वफा एक साल-हिन्दी व्यंग्य कविता
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सामानों से शहर सजे हैं
खरीदो तो दिल भी
मिल जायेगा।
इंसान की नीयत भी
अब महंगी नहीं है
पैसा वफा कमायेगा।
कहें दीपकबापू बाज़ार में
घर के भी सपने मिल जाते
ग्राहक बनकर निकलो
हर जगह खड़ा सौदागर
हर सौदे की वफा
एक साल जरूर बतायेगा।
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सिंहासन का नशा-हिन्दी व्यंग्य कविता
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आकाश में उड़ने वाले पक्षी
कभी इश्क में
तारे तोड़कर लाने का
वादा नहीं करते हैं।
जाम पीने वाले
कतरा कतरा भरते ग्लास में
ज्यादा नहीं भरते हैं।
कहें दीपकबापू सिंहासन पर
बैठने का नशा ही अलग
जिन्हें मिल जाता
फिर कभी उतरने का
इरादा नहीं करते हैं।
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नीयत के सियार
दिखने मे गधे हैं।
‘दीपकबापू’ न पालें भ्रम
स्वार्थ से सभी सधे हैं।
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