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Thursday, February 22, 2018

खजाना लूटकर लेते दुनियां का मजा-दीपकबापूवाणी (Khazana lootkar lete duniyab ka Maza-DeepakBapuWani)

राजकाज में व्यस्त दौलत के दलाल, पाखंड पर नहीं करते कभी मलाल।
‘दीपकबापू’ भलाई की दुकान खोले बैठे, बेचते हमदर्दी की छाप में बवाल।।
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जनधन लूटकर साहूकार भी बड़े हो गये, सरकार के कदम उनके द्वार खड़े हो गये।
‘दीपकबापू’ सत्ता की दलाली में हाथ सभी के काले, लुटेरे भी सेठ जैसे बड़े हो गये।।
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खजाना लूटकर लेते दुनियां का मजा, सब मिल बांटकर खाते कौन देगा सजा।
‘दीपकबापू’ तिजोरी से लूटे सोने के सिक्के, पहरेदारों के कान में घंटा देर से बजा।।
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न सत्संग किया न कभी ध्यान लगाया, पढ़ किताब बाज़ार मे चेलों का मेला लगाया।
‘दीपकबापू’ ज्ञान की बातें सब जगह करें, जोगी ने अपना मन माया संग्रह में लगाया।।


इंसानी नाम के साथ काम भी बोले, कभी काम भी बुरे नाम का खाता खोले।
‘दीपकबापू’ अपने नाम पर इतराने से डरें, जिंदगी कभी नीचे कभी ऊपर डोले।।
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ताज पहनते ही हर सिर पर घमंड चढ़े, इंसान दिखना चाहते फिर भगवान से बढ़े।
‘दीपकबापू’ दरबार की जुबान पर नहीं करें भरोसा, चाटुकारों जहां लालच से खड़े।।
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