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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
अब नहीं आती उनकी बेदर्दी पर
हमें भी शर्म,
क्योंकि बिके हुए हैं सभी बाज़ार में
चलेंगे वही रास्ता
जिस पर चलने की कीमत उन्होंने पाई।
आजादी के लिये जूझने का
हमेशा स्वांग करते रहेंगे,
विदेशी ख्यालों को लेकर
देश के बदलाव लाने के नारे गढ़ते रहेंगे
क्योंकि गुलाम मानसिकता से मुक्ति
कभी उन्होंने नहीं पाई।
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देश के पहरेदारों को
अपने ही घर में गोलियां लगने का
जश्न उन्होंने मनाया,
इस तरह गरीब के हाथों गरीब के कत्ल कों
पूंजीवाद के खिलाफ जंग बताया।
बिकती है कलम अब पूंजीपतियों के हाथ
बड़ी बेशर्मी से,
धार्मिक इंसान को धर्मांध लिखें,
तरक्की के रास्ते का पता लिखवाते अधर्मी से,
गरीबों और मज़दूरों के भले का नारा लगाते
पहुंचे प्रसिद्धि के शिखर पर ऐसे बुद्धिमान
जिन्होंने कभी पसीने की खुशब को समझ नहीं पाया,
भले ही दौलतमंदों के कौड़ियों में
उनकी कलम खरीदकर
समाज कल्याण के नारे लगाते हुए
अपनी तिजोरी का नाप बढ़ाया।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
एक बार कोई नारा लगाकर
शिखर पर चढ़ गये
ऐसे इंसान बुत की तरह
पत्थर में तस्वीर बनकर जड़ गये।
नीचे गिरने का खौफ उनको
हमेशा सताता है,
बचने के लिये
बस, वही नारा लगाना आता है,
दशकों तक वह खड़े रहेंगे,
उनके बाद उनके वंशज भी
उसी राह पर चलेंगे,
करते हैं अक्लमंद भी हर बार
उनकी चर्चा,
क्योंकि नहीं होता अक्ल का खर्चा,
करोड़ों शब्द स्याही से
कागज पर सजाये गये,
पर्द पर भी हर बार नये दृश्य रचाये गये,
कहें दीपक बापू
जमाने भर में कई विषयों पर
चल रही बहस खत्म नहीं होगी,
नारे पर न चलें तो कहलायें विरक्त योगी,
चले तो खुद को ही लगें रोगी,
भारत छोड़ते छोड़ते अंग्रेजों ने
कुछ इंसान बुतों के रूप में छोड़े,
जिन्होंने अपनी जिंदगी में बस नारे जोड़े,
तो अकलमंदों की भी चिंतन क्षमता हर गये
इसलिये देश खड़ा है
बरसों से पुराने मुद्दों पर अटका
अपने ही आदर्श से भटका
सच कहते हैं ज्ञानी
देश की अकल पर अंग्रेज ताला भी जड़ गये।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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चेहरे पर हंसी होने का मतलब हमेंशा
दिल का खुश होना नहीं होता
कई लोग खिलखिलाते हैं
दूसरों को हँसाने के लिए
ताकि उनके पेट की भूख मिट जाए
आंसू बहाना भी हमेंशा रोना नहीं होता
कुछ लोग रोते हैं दूसरे को दहलाने के लिए
ताकि चंद सामान मिल जाए
अपने मन की भूख मिटाने के लिए
इंसान खेलता है जज्बातों के साथ
जो उसके लिए कभी पराया तो कभी अपना होता
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