- विद्या, तप, इन्द्रियों पर संयम और लोभ के त्याग के अलावा मनुष्य के पास शांति का कोई मार्ग नहीं है ।
- बुद्धि से मनुष्य अपने भय को दूर करता है, तपस्या से श्रेष्ठता और उच्च स्थान प्राप्त करता है। गुरु की ह्रदय से सेवा और नित्य योग साधना करते हुए तन और मन में शांति पाता है।
- जिसे मोक्ष की इच्छा होती है वह मनुष्य पुण्य का भी आश्रय भीं नहीं लेते। वह वेद पढ़कर भी उसके पुण्य का आश्रय नहीं लेते और निष्काम और निर्लिप्त भाव से इस लोक में विचरण करते हुए सारे काम कर आनंद लेते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
- जो परस्पर भेदभाव करते हैं वे कभी धर्म का आचरण नहीं करते। सुख भी नहीं पाते। उन्हें कभी इस संसार में गौरव प्राप्त नहीं होता और कभी शांत नहीं रह पाते।
- जैसे गाय में दूध, विद्वान में तप और युवा स्त्रियं में चंचलता का भाव होना स्वाभाविक है , वैसे ही अपनी जाति के लोगों से भय होना स्वाभाविक है।
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