आर्तस्तु कुर्यात्स्वस्थ: सन्यथाभाषितमादित:।
स: दीर्घस्यापि कालस्य तल्लभेतैव वेतनम।।
मनु स्मृति के इस श्लोक के अनुसार जो नौकर स्वस्थ अवस्था में ईमानदारी व निष्ठा से स्वामी के आदेश का पालन करता है वह रोगादि के कारण यदि लंबे समय तक अनुपस्थित रहे तो भी उसे वेतन प्रदान करना चाहिए।
आज के संदर्भ में व्याख्या- आज हम अक्सर ऐसी घटनाएँ देखते हैं जिसमें नौकर द्वारा मालिक के प्रति तमाम तरह के अपराध किये जाते हैं। दरअसल आज के भौतिक युग में सब जगह अविश्वास का माहौल है और ऐसे में किसी का विश्वास जीतना है तो उसकी सहायता कर ही यह संभव है। जो लोग धनी हैं उन्हें अपने नौकरों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि विपति में वह उसकी सहायता करेंगे। कोई भी मालिक जब अपने नौकर को कोई काम कहता है तो वह उसे ईमानदारी से करता है तो उसकी प्रशंसा करना चाहिए। जब कई लोग बेईमानी से काम करते हैं उनको भी वेतन मिलता है तो और ईमानदार को भी वही तो न्याय कहाँ रह जाता है।
जो धनिक लोग चाहते हैं कि उनके नौकर ईमानदार रहें उन्हें उनके लिए नियत वेतन के साथ उसकी ईमानदारी के लिए एक राशि अपने मन में रख लेना चाहिए जो उसे बीमार पड़ने, बच्चों की शिक्षा और बेटी के विवाह आदि के समय उपहार के रूप में देनी चाहिए। अगर वह कभी स्वयं बीमार पड़ जाता है तो उसका वेतन तो देना चाहिए बल्कि उसका इलाज भी कराना चाहिए। उसे विश्वास दिलाना चाहिऐ कि वह अगर नौकर के रूप में वफादारी निभाएगा तो हम मालिक की तरह भी निभाएंगे। याद रखना श्रम खरीदा जा सकता है पर ईमानदारी नहीं।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
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3 years ago
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