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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, April 27, 2008

माफ़ी किस बात की-हिन्दी शायरी

अपनी जिंदगी में कामयाबी पाने का नशा
आदमी के सिर कुछ यूं चढ़ जाता
कि नाकामी झेलने की मनस्थिति में नहंी आता
जजबातों के खेल में
कुछ ऐसा भी होता है
कि जिसकी चाहत दिल में होती
वही पास नहीं आता है
इस जिंदगी के अपने है दस्तूर
अपने दस्तूरों पर चलने वाला
आदमी हमेशा पछताता है

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अपने वादे से मुकर कर उसने कहा
‘यार माफ करना मैंने तुम्हें धोखा दिया’
हमने कहा
‘माफी किस बात की
भला कब हमने तुम पर यकीन किया’
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