कठपुतली का खेल दिखाने वाला एक व्यक्ति अपना काम बंद कर स्टेडियम के बाहर मूंगफली का ठेला लगाकर बैठ गया था। बचपन में उसका खेल देखने वाले व्यक्ति ने जब उसे देखा तो पूछा-‘ तुमने कठपुतली का खेल दिखाना बंद कर यह मूंगफली का ठेला लगाना कब से शुरू कर दिया ?’
वह बोला-‘बरसों हो गये। जब से इन असली पुतलों का खेल शूरू हुआ है तब से अब लकड़ी के नकली पुतलों का खेल छोड़कर इधर ही आते हैं। इसलिए मैं भी इधर आ गया।
वह आदमी हंस पड़ा तो उसने कहा-‘‘आप अखबार तो पड़ते होंगे। यह हाड़मांस के असली पुतले भी कोई न तो अपनी बोलते हैं न चाल चलते हैं। इनकी भी डोर किसी नट के हाथ में ही तो है। स्टेडियम में लोग तालियां बजाते हैं पर किसके लिये? जो खेल रहे हैं वह क्या अपने मजे के लिये खेल रहे हैं? नहीं वह पैसा कमाने के लिये खेल रहे हैं। आप फिल्मों में हीरो-हीरोइन के देख लीजिये वह भी तो किसी के कहने पर डायलाग बोलते हैं, नाचते हैं और झगड़े के सीन करते हैं। बड़े लोग जिनके पास किसी के पास जाने की फुर्सत नहीं है इन मैचों और संगीत कार्यक्रमों को देखने आते हैं। भला हमारे खेल को कौन देखता? इसलिये अब मैं स्टेडियम के बाहर आते खिलाडियों, अभिनेताओं और दर्शकों को ऐसे ही देखता हूं जैसे वह मेरे पुतलों को देखते थे।
उस आदमी ने कहा-तो तुम अब खेल देखते हो? वह भी बाहर बैठकर।
वह बोला-‘‘दर्शक तो मैं ही हूं जो इतनी सारे पुतलों को देख रहा हूं। बाकी सब तो करतब दिखाने वाले हैं। हां, हमारे खेल में हम दिखते थे पर इनके नट कौन है उनको कोई नहीं देख पाता। यह सब कैमरे का कमाल है।’’
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
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