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Saturday, May 10, 2008

इस तरह कवि ने पूरा नहाया-हास्य कविता

सुबह एक कवि नहाते हुए गुनगुनाया
‘ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए
गाना आये या ना, गाना चाहिए’

उधर से पत्नी बेलन लेकर दौड़ी आयी
करने लगी उसकी पिटाई
’कमबख्त! पंद्रह दिन बाद टैंकर
अपने घर के बाहर आया
मुश्किल से एक बाल्टी भरी
उसे भी तुमने गाने में बहाया
अभी करती हूं
इसी बची आधी बाल्टी में
तुम्हारे गानों की कापी डालकर उनका सफाया’

कवि ने पिटते हुए भी गाया
‘क्या खूब लगती हो
बहुत सुंदर लगती हो
कैसा रूप तुमने पाया’

पत्नी के बदल गये तेवर और
मुस्कराते हुए बोली
‘ठीक है इस बार माफ कर देती हूं
पर अगली बार ध्यान रखना
तुम्हारे गाने से मेरा मन भाया’

इस तरह कवि ने पूरा नहाया
...........................

2 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

:) सही है..

***राजीव रंजन प्रसाद

mehek said...

bahut hi sahi sachhi baat

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