दादा-दादी से अलग रहने वाले
बच्चे को उसके पिता सिखा रहे थे
'बेटा , हमारे बुजुर्गों के कहे अनुसार
सदैव अपने से बडे लोगों का
तुम सम्मान करना
उनका कहना है कि हर
बच्चे को चाहिये अपने
मां-बाप की सेवा करना
उसी का होता है जीवन सफ़ल'
बच्चे ने उत्सुकता वश पूछा
'हम दादा-दादी के साथ क्यों नहीं रह्ते
क्या आप उनकी सेवा करते हो
क्या आपका जीवन भी है सफ़ल'
उसके पिता हो गये खामोश
उतर गयी शकल
बडा होकर वह ऐक गुरु के पास गया
शरण के साथ मांगा भक्ति के लिये ज्ञान
मांगी वह शक्ति जिससे
मिटे मन का मैल और अभिमान
गुरुजी ने कहा
'सदा अपने गुरु की आज्ञा मानो
और जो कहैं उसे ब्रह्मज्ञान ही जानो
सदा अपने माता-पिता के सेवा करो
तभी तुम्हारा जीवन होगा सफ़ल'
उसने पूछा
'गुरुजी आपके गुरु और माता-पिता
कहां है और क्या आप भी उनकी सेवा करते हैं'
गुरुजी हो गये बहुत नाराज्
कहीं उनके मन पर भी गिरी थी
उसके शब्दों की गाज्
गुससे में बोले-
ऐसे सवाल करोगे तो
कभी भी तुम्हें नहीं आयेगी अकल'
वह बन गया बहुत बडा डाक्टर
करने लगा गरीबों की भी मुफ़्त सेवा
समाज सेवा में कमाया उसने नाम
गरीबों की भीड जुटती थी उसके
घर में सुबह और शाम
कीचड में खिल गया जैसे कमल
ऐक गरीब बेटे की मां की उसने
अपने घर पर रखकर सेवा की
उसने दी उसे दुआ और कहा
'बेटे जरूर तुम अपने मां-बाप की भी
सेवा बहुत करते होगे
तभी है तुम्हारा जीवन है सफ़ल
डाक्टर ने फ़ीकी हंसी हंसते हुए कहा-
'बस यही नहीं समझा अपने जीवन में
नर्सरी से शिक्षा प्राप्त करना शुरू की
ले आया डिग्री साइंस आफ़ मेडिकल्
मां-बाप की सेवा की थ्योरी खूब सुनीं
पर कभी न देखा उसका प्रेक्टिकल
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3 years ago
1 comment:
दीपक जी,बहुत बढिया व प्रेरक कविता है।आज के गिरते समाजिक स्तर पर बढिया चोट की है।बधाई स्वीकारे।
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