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Monday, October 6, 2008

अल्फाज़ का भाव भी बाज़ार में नीचे ऊपर चलता है-हिन्दी शायरी

उनकी आँखों में प्यार का दरिया
हमेशा बहता लगता है
क्योंकि बाज़ार के खिलाडी हैं
जहां इन्हीं अदाओं पर सौदागर का
काम चलता है

बाज़ार में दोस्ती होती नहीं
की जाती हैं फायदे के लिए
चले तो कई बरसों तक
प्यार और दोस्ती का सफ़र
यूं ख़त्म हो जाता है
जहां टूटा फायदे और मतलब का क्रम
वही सामने आ जाता है रिश्तों का भ्रम
जज्बातों का व्यापार ऐसे ही
सदियों से चलता है

चेहरे पर नाकाब सभी पहने
जरूरी नहीं हैं
अब तो जुबान से भी यह काम चलता है
अपने दिल की बात किसी को कहने से
कोई फायदा नहीं
बेच सकता है उसे सुनने वाला और कहीं
दोस्ती के व्यापारियों का क्या
सस्ते में प्यार बेच दें
अपने दिल की घाव क्या दिखाएँ उनको
दर्द का भाव तो बाज़ार में और महँगा चलता है

क्या अपनी जुबान से कहें
समय का इन्तजार ही है
आने से पहले सब खामोशी से सहें
अल्फाज़ हमारे अभी सस्ते ही सही
पर यह बाज़ार का खेल है
जिसमें भाव कभी नीचे तो कभी ऊपर चलता है
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यह हिंदी लघुकथा मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’ पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!! दीपक भाई!!

आशा करता हूँ अब तबीयत दुरुस्त होगी.

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