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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, March 2, 2009

इतिहास के पत्थर-व्यंग्य कविता

प्रस्तर की इमारतों को दिखाकर
वह उसका इतिहास बताते हैं
सुनने वाले निहारते हुए
स्वयं भी पत्थर हो जाते हैं
पता नहीं इतिहास पर होता शक उनको
या पत्थर पढ़ने लग जाते हैं
बिचारे इंसान
इतिहास की सोच के पत्थर
अपने सिर पर क्यों ढोये जाते हैं

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