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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 22, 2009

उसने बस यही कहा ‘अच्छा लिखो’-हास्य व्यंग्य

दरवाजे पर दस्तक होते ही ब्लागर कंप्यूटर से उठा और बाहर आया तो उसे सीखचों के बाहर दूसरा ब्लागर दिखाई दिया। पहले ब्लागर ने दरवाजा खोले बगैर ही कह दिया-’‘यार, अभी मैं बिजी हूं। कल मिलने आना।’’
दूसरे ब्लागर ने हंसकर कहा-‘लगता है गृहस्वामिनी घर में नहीं है। तभी ऐसे जवाब दे रहे हो जैसे वह सैल्समेनों को देती हैं।’
पहले ब्लागर ने कहा-‘कम से कम एक बात की तारीफ तो करो। तुम्हारी अकेले में सैल्समेनों जैसी इज्जत तो कर रहा हूं।’
उस समय पहला ब्लागर निकल और बनियान पहने हुए था। दूसरे ब्लागर ने कहा-‘तुम्हें शर्म आना चाहिये। इस तरह निकर और बनियान पहने घर में घूमते हो। अरे, भले ही जैसे भी लेखक हो पर हो तो सही। कोई प्रशंसक या प्रशंसिका आ जाये तो तुम्हें इस हाल में देखकर क्या कहेगी?’
पहले ब्लागर ने कहा-‘ऐसे प्रशंसक तो तुम्हें ही अधिक मिलते हैं। हमें कौन पूछता है।’
दूसरा ब्लागर ने कहा-‘नहीं ऐसी बात नहीं है! कवि चाहे जैसे भी हों उनके पास इक्का दुक्का प्रशंसक मिल ही जाते हैं। देखो मैं तुम्हारा प्रशसंक हूं न! तभी तो तुमसे मिलने आता हूं। मुझसे कई लोग तुम्हारे बारे में पूछते हैं पर तुम्हारी साहित्य साधना में विघ्न न पड़े इसलिये किसी को पता नहीं देता। अब तो दरवाजा खोलो। देखो बाहर अब कितनी धूप है।’
पहला ब्लागर-‘कोई बात नहीं! सामने वाले मकानों की लाईन से होते हुए चले जाओ। वहां छाया है। आज मेरे पास समय नहीं है।’
इतने में गृहस्वामिनी आ गयी और दूसरे ब्लागर से बोली-नमस्ते भाई साहब! बहुत दिनों बाद आये हो।’
दूसरे ब्लागर बोला-‘हां, आज आपके यहां चाय पीने का मन था और भाई साहब से भी साहित्यक चर्चा करनी थी। आप इस धूप में कहां गयी थी।’
गृहस्वामिनी ने कहा-‘यहीं पड़ौस में एक सहेली की तबियत खराब थी। उसे देखने गयी थी।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘भाभी जी, आपका स्वाभाव भी भाई साहब की तरह अच्छा है। अब देखिये यह मेरे साथ यहीं पर ही प्रेम से वार्ता करने लग गये। यह दरवाजा खोलना ही इनको याद ही नहीं रहा। हालांकि इनको थोड़ी देर बाद ही इस बात का अफसोस होगा कि मुझे धूप में खड़ा रखा।’
मन मारकर पहले ब्लागर को दरवाजा खोलना पड़ा। गृहस्वामिनी के साथ दूसरा ब्लागर बिना किसी आमंत्रण की प्रतीक्षा किये बिना अंदर दाखिल हो गया।’
गृहस्वामिनी तो दूसरे कमरे में चली गयी पर दूसरा ब्लागर चलते चलते पहले ब्लागर के पीछे उसके कंप्यूटर रूप तक आ गया। फिर कुर्सी पर बैठते हुए बोला-‘सच बात तो यह है कि तुम जैसी कचड़ा हास्य कवितायें लिखते हो उससे प्रशसंक तो कोई बन ही नहीं सकता। खास तौर से महिलायें तो बिल्कुल नहीं। हां, अगर कोई दूसरा हास्य कवि तुम्हें इस निकर और बनियान में देख ले तो जरूर उस पर हास्य कविता लिख लेगा।’
पहले ब्लागर ने कहा-‘इधर उधर की बातें छोड़ो। बताओ कैसे आना हुआ?’

दूसरे ब्लागर ने कहा-‘यार, मेरे पीछे कुछ उधार देने वाले पड़े हैं। मुझे एक बैंक से लोन चाहिये ताकि इन कर्जदारों से पीछा छुड़ाकर अपना काम ढंग से शुरु कर सकूं। एक बैंक मैनेजर है जो शायद तुम्हें जानता है, किसी ने मुझे बताया? तुम उससे जरा सिफारिश कर दो।’
पहले ब्लागर ने उसका नाम पूछा फिर दूसरे ब्लागर से कहा-‘यार, वह मुझे जानता है पर इतना नहीं कि मेरी सिफारिश को मान ले। एक बार पहले भी उसने मेरी बात नहीं मानी थी और कहा था कि तुम तो केवल कविता करना जानते हो बाकी कुछ नहीं जानते।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘हां, मुझे उसने बताया था कि वह तुम्हारी सिफारिश नहीं मानेगा। यही बात तुम्हें बताने मैं आया हूंं कि देखो तुम्हारे लिखने की वजह से तुम्हारा कोई सम्मान नहीं है।’
पहला ब्लागर-’ठीक है बता दिया अब जाओ।’
इतने में गृहस्वामिनी आ गयी तब दूसरा ब्लागर बोला-‘इसलिये मैं सभी से कहता हूं कि अच्छा लिखो। कुछ ऐसा लिखो जो समाज के मतलब का हो। यह व्यंग्य, कहानी,लघुकथा और हास्य कविता लिखने से काम नहीं चलेगा।’
गृहस्वामिनी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा-‘आप कौनसा ब्लाग लिखते हैं। जरा बताईये। मैं उसे पढ़ूंगी।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘अरे, इतनी सी बात! भाई साहब तो मेरे सारे ब्लाग के नाम जानते है।’
गृहस्वामिनी ने पूछा-‘पर आप लिखते क्या हैं?’
दूसरा ब्लागर ने कहा-‘यही कि अच्छा लिखो तभी तुम्हारा सम्मान होगा।’
गृहस्वामिनी ने कहा-‘अच्छा पढ़ूंगी। अभी आप बैठिये चाय बनने के लिये गैस पर रख दी है।’
वह चली गयी तो पहले ब्लागर ने कहा-‘अच्छा हुआ तुमने अपने ब्लाग का नाम नहीं बताया। उन पर हर दूसरे पाठ में यही लिखा है ‘अच्छा लिखो’। हालांकि कैसे लिखें यह उसमें नहीं लिखा। अलबत्ता दूसरों के पाठ पर कोसते हुए बहुत कुछ लिखते हो। कभी कभी अपने ही छद्म ब्लाग पर असली की तो असली पर छद्म नाम के ब्लाग की प्रशंसा करते हो। इसलिये कुछ अच्छे ब्लाग तुम्हारे बताकर पढ़वाने पढ़ेंगे।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘हां, यही ठीक रहेगा। बदले में ं तुम्हारी बेकार हास्य कविताओं की मै चर्चा यहां कभी नहीं करूंगा।’
पहले ब्लागर-‘वैसे यह तो बताओ कि अच्छा कैसे लिखा जाये।’
दूसरा ब्लागर-‘यही पता होता तो खुद ही लिखना शुरु नहीं कर देता।’
इतने में गृहस्वामिनी चाय लायी तब दूसरा ब्लागर बोला-‘इस चाय पर कभी हास्य कविता नहीं लिखना।‘
पहला ब्लागर बोला-‘अच्छा आईडिया दिया। इस पर तो हास्य कविता बनती है।’
दूसरा ब्लागर बोला-‘हां, पर इस मुलाकात पर एक बढि़या सी रिपोर्ट जरूर लिखना।’
पहला ब्लागर बोला-‘आज ऐसा क्या हुआ? जो रिपोर्ट लिखूं।’
दूसरा ब्लागर बोला-‘कितना अच्छा तो डिस्कशन हुआ। बस तुम तो यह लिखना कि ‘अच्छा लिखो।’
पहला ब्लागर-‘पर यह तो बताओ किसकी तरह अच्छा लिखो।’
दूसरे ब्लागर ने चाय का कप टेबल पर रखते हुए कहा-‘तुम अपना उदाहरण दे दो।’
इतने में गृहस्वामिनी बाहर चली गयी तो दूसरा ब्लागर बोला-‘यह बात मैंने मजाक मेंे कही थी ताकि तुम्हारा घर में अच्छा प्रभाव बना रहे। बस तुम तो एक ही बात लिखो कि ‘अच्छा लिखो’।
दूसरा ब्लागर चला गया। अंदर आकर गृहस्वामिनी ने पूछा क्या कह रहा था-‘तुमने सुना नहीं। यही कह रहा था कि अच्छा लिखो।
गृहस्वामिनी ने पूछा-‘पर यह भी तो पूछते कि कैसे अच्छा लिखना है?’
पहले ब्लागर ने कहा-‘यह बात मैं खुद ही समझ लूंगा अगर उससे पूछता तो अपने अल्प ज्ञान की उसके सामने पोल खुल जाती।’
नोट-यह हास्य व्यंग्य काल्पनिक है तथा इसका किसी घटना या व्यक्ति से लेना देना नहीं है। इसका लेखक किसी दूसरे ब्लागर को नहीं जानता।
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यह हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग
‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’
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कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अच्छा लिखो तो कमेंट भी आएंगे:)

RAJ SINH said...

भयि अछ्छा तो लिखा ही है ........लिख ही रहे हो !
कमेन्त्स आते हैं तो किसे अच्छा नहीं लगता ?
खास कर जो पढ समझ करे .
लेकिन......
लेकिन सिर्फ़ उदारता वश , या मिले के लौटाये जाने जवाने के लिये ही ,या सिर्फ़ एक दूसरे की तिप्पणी सन्ख्या ही बढाये जाने के लिये तो ....
औरों को तो ना कह पाऊंगा पर आप ?
आप तो अपनी ’ निति ’ अपने संपादकीय मे कह ही चुके हैं !

तो आपका लेखन सिर्फ़ टिप्पणियों का निमित्त और मोहताज़ ना बने बस ! यह सब से विनाषक ’ ऐषणा ’ का प्रकार है .

लालच का ही एक प्रकार !

( यार क्या बेवकूफ़ी है मेरी भी कि ऐसे को सुना रहा हूं...................जो तमाम ’ नीतियों ’ का अध्येता है .
अपनी खुद की आधुनिक मीमान्षा के साथ ........:) :) :) .

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