शर्म आंखों में होती है
पर्दे कभी उसका बयां नहीं करते
इज्जत की जगह दिल में है
शब्दों में बयां कभी नहीं करते।
जब खौफ हो इंसान के अंदर
किसी की दौलत और शौहरत का
उसे दिखाने के लिये
जमाना करता है सलाम,
पर वहां शर्म और इज्जत होती है हराम,
लोग अपने बयां में
दिल की दुआयें नहीं भरते
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जब तक सोचते रहे
अपनी जिंदगी की बदतर हालात पर
तब मन पर बोझ रहा
आंखों से नहीं निकले आंसू
पर दिल में दलदल करते रहे।
जमाना हंसा जब हमने दर्द कहे।
जबसे अपने रोने पर ही
खिलखिलाना सीख लिया
तब से हैरान हैं लोग
अक्सर पूछते हैं कि
‘क्या तुम्हारे गमों ने साथ छोड़ा
कैसे खुशियों को अपनी तरफ मोड़ा
तुम्हारे गमों पर हंसकर
बहलाते थे दिल अपना
उसी से अपना दिल हल्का करते रहे।।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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