एक वर्ष में दो बार उसके आने का स्वागत करते दिखेंगे।
पहले ईसवी फिर विक्रम संवत् पर जश्न मनते दिखेंगे।
बस एक दिन नयी सोच का वादा,
नये सपनों के साथ जीने का इरादा,
फिर पुरानी राह पर कदम बढ़ते दिखेंगे।
बाजार के सौदागर पुराने जज़्बातों को
रोज नया सजाकर दिखाते हैं,
एक दिन में सब हवा हो जाते हैं,
नये के साथ पुराने सामान भी बिकेंगे।
देर रात को सोकर दोपहर में उठने वाला
क्या जाने हर पल नया होता है,
जब करना है सुबह की बेला में ताज़गी का अहसास
उस समय वह नींद में सोता है
क्यों नहीं पुरानेपन से घबड़ाये लोग
नये वर्ष में ताजगी लेने के लिये
हुजूम में जुटेंगे,
दुःख से नहीं बल्कि खुशी से लुटेंगे,
बाजार के कलमकार भी
पुराने अहसासों को नये शब्दों में लिखेंगे।
पूरे वर्ष ताजगी और चैन की चाहत लिये लोग
एक दिन में पुराने होते दिखेंगे।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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