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Thursday, August 26, 2010

कसूरवारों की शख्सियत-हिन्दी शायरी (kasurvaron ki shakhsiyat-hindi shayari)

कौन कहता है
अखबार की खबर बासी हो जाती है,
बस!
हादसों, हत्याओं और हमलों की घटनाओं में
इलाकों के नाम और चरित्र बदल जाते हैं
इसलिये कहानियां ताजी हो जाती हैं।
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लूट और व्यापार में
अब अंतर नज़र नहीं आता है,
झूठ भी सच की तरह
बाज़ार में सज जाता है,
कातिलों के भी इंसानी हकों की
मांग उठती है चारों तरफ
कसूरवारों के कसूर की बजाय
जाति, धर्म और भाषा के आधार पर भी
उनकी शख्सियत की पहचान कर
सजा देने या बहाल करने का
फैसला अब सरेआम किया जाता है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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1 comment:

पंख said...

कौन कहता है
अखबार की खबर बासी हो जाती है.....
kya khub kaha hai.... aapki rachna ki jitni tarif karu kam hai... :)

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