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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, June 30, 2011

आधुनिक चिकित्सा में ध्यान का उपयोग-हिन्दी लेख *surgery and yoga sadhanna-hindi lekh

                ईरान के डाक्टर का एक किस्सा प्रचार माध्यमों में देखने को मिला जिसे चमत्कार या कोई विशेष बात मानकर चला जाये तो शायद बहस ही समाप्त हो जाये। दरअसल इसमें ध्यान की वह शक्ति छिपी हुई है जिसे विरले ही समझ पाते हैं। साथ ही यह भी कि भारतीय अध्यात्म के दो महान ग्रंथों ‘श्रीमद््भागवत गीता’ तथा ‘पतंजलि योग साहित्य’ को भारतीय शिक्षा प्रणाली में न पढ़ाये जाने से हमारे देश में से जो हानि हो रही है उसका अब शिक्षाविदों को अंांकलन करना चाहिए। यह भी तय करना चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इन दो ग्रंथों का शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल न कर कहीं हम अपने देश के लोगों के अपनी पुरानी विरासत से परे तो नहीं कर रहे हैं।
           पहले हम ईरान के डाक्टर हुसैन की चर्चा कर लें। ईरान के हुसैन नाम के चिकित्सक अपने मरीजों को बेहोशी का इंजेक्शन दिये बिना ही उनकी सर्जरी यानि आपरेशन करते हैं। अपने कार्य से पहले वह मरीज को आंखें बंद कर अपनी तरफ घ्यान केंद्रित करते हैं। उसके बाद अपने मुख से वह कुछ शब्द उच्चारण करते हैं जिससे मरीज का ध्यान धीरे धीरे अपने अंगों से हट जाता है और आपरेशन के दौरान उसे कोई पीड़ा अनुभव नहीं होती। इसे कुछ लोग हिप्टोनिज्म विधा से जोड़ रहे हैं तो कुछ डाक्टर साहब की कला मान रहे हैं। हमें यहां डाक्टर हुसैन साहब की प्रशंसा करने में कोई संकोच नहीं है। उनके प्रयासों में कोई दिखावा नहीं है और न ही वह कोई ऐसा काम कर रहे हैं जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिले। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो अपने ज्ञान का दंभ भरते हुए दिखावा करते हैं। सच कहें तो डाक्टर हुसैन संभवत उन नगण्य लोगों में हैं जो जान अनजाने चाहे अनचाहे ध्यान की विधा का उपयोग अपने तरीक से करना सीख जाते हैं या कहें उनको प्रकृत्ति स्वयं उपहार के रूप में ध्यान की शक्ति प्रदान करती है । उनको पतंजलि योग साहित्य या श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने की आवश्यकता भी नहीं होती। ध्यान की शक्ति उनको प्रकृति इस तरह प्रदान करती है कि वह समाधि आदि का ज्ञान प्राप्त किये बिना उसका लाभ लेने के साथ ही दूसरों की सहायता भी करते हैं।
           हुसैन साहब के प्रयासों से मरीज का ध्यान अपनी देह से परे हो जाता है और जो अवस्था वह प्राप्त करता है उसे हम समाधि भी कह सकते हैं। उस समय उनका पूरा ध्यान भृकुटि पर केद्रित हो जाता है। शरीर से उनका नाता न के बराबर रहता है। इतना ही नहीं उनके हृदय में डाक्टर साहब का प्रभाव इतना हो जाता है कि वह उनकी हर कही बात मानते है। स्पष्टतः ध्यान के समय वह हुसैन साहब को केंद्र बिन्दु बनाते हैं जो अंततः सर्वशक्मिान के रूप में उनके हृदय क्षेत्र पर काबिज हो जाते हैं। वहां चिक्त्सिक उनके लिये मनुष्य नहीं शक्तिमान का आंतरिक रूप हो जाता है। ऐसी स्थिति में उनकी देह के विकार वैसे भी स्वतः बाहर निकलने होते है ऐसे में हुसैन जैसे चिकित्सक के प्रयास हों तो फिर लाभ दुगुना ही होता है। देखा जाये तो ध्यान में वह शक्ति है कि वह देह को इतना आत्मनिंयत्रित और स्वच्छ रखता है उसमें विकार अपना स्थान नहीं बना पाते।
         इतिहास में ईरान का भारत से अच्छा नाता रहा है। राजनीतिक रूप से विरोध और समर्थन के इतिहास से परे होकर देखें तो अनेक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि ईरान की संस्कृति हमारे भारत के समान ही है। कुछ तो यह मानते हैं कि हमारी संस्कृति वहीं से आकर यहां परिष्कृत हुई पर मूलतत्व करीब करीब एक जैसे हैं।
         ध्यान कहने को एक शब्द है पर जैसे जैसे इसके अभ्यस्त होते हैं वैसे ही इस प्रक्रिया से लगाव बढ़ जाता है। वैसे देखा जाये तो हम दिन भर काम करते हैं और रात को नींद अच्छी आती है। ऐसे में हम सोचते हैं कि सब ठीक है पर यह सामान्य स्थिति है इसमें मानसिक तनाव से होने वाली हानि का शनैः शनै प्रकोप होता है। हम दिन में काम करते है और रात को सोते हैं इसलिये मन और देह की शिथिलता से होने वाले सुख की अनुभूति नहीं कर पाते। जब कोई सामान्य आदमी ध्यान लगाना प्रारंभ करता है तब उसे पता लगता है कि उससे पूर्व तो कभी उसका मन और देह कभी विश्राम कर ही नहीं सकी थी। सोये तो एक दिमाग ने काम कर दिया और दूसरा काम करने लगा और जागे तो पहले वाली दिमाग में वही तनाव फिर प्रारंभ हो गया। इसके बीच में उसे विश्राम देने की स्थिति का नाम ही ध्यान है और जिसे जाग्रत अवस्था में लगाकर ही अनुभव किया जो सकता है।
ध्यान के विषय में यह लेख अवश्य पढ़ें
पतंजलि योग विज्ञान-योग साधना की चरम सीमा है समाधि (patanjali yog vigyan-yaga sadhana ki charam seema samadhi)
        भारतीय योग विधा में वही पारंगत समझा जाता है जो समाधि का चरम पद प्राप्त कर लेता है। आमतौर से अनेक योग शिक्षक योगासन और प्राणायाम तक की शिक्षा देकर यह समझते हैं कि उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया। दरसअल ऐसे पेशेवर शिक्षक पतंजलि योग साहित्य का कखग भी नहीं जानते। चूंकि प्राणायाम तथा योगासन में दैहिक क्रियाओं का आभास होता है इसलिये लोग उसे सहजता से कर लेते हैं। इससे उनको परिश्रम से आने वाली थकावट सुख प्रदान करती है पर वह क्षणिक ही होता है । वैसे सच बात तो यह है कि अगर ध्यान न लगाया जाये तो योगासन और प्राणायाम सामान्य व्यायाम से अधिक लाभ नहीं देते। योगासन और प्राणायाम के बाद ध्यान देह और मन में विषयों की निवृत्ति कर विचारों को शुद्ध करता है यह जानना भी जरूरी है।
    पतंजलि योग साहित्य में बताया गया है कि 
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      देशबंधश्चित्तस्य धारण।।
    ‘‘किसी एक स्थान पर चित्त को ठहराना धारणा है।’’
     तत्र प्रत्ययेकतानता ध्यानम्।।
       ‘‘उसी में चित्त का एकग्रतापूर्वक चलना ध्यान है।’’
        तर्दवार्थमात्रनिर्भासयं स्वरूपशून्यमिव समाधिः।।
        ‘‘जब ध्यान में केवल ध्येय की पूर्ति होती है और चित्त का स्वरूप शून्य हो जाता है वही ध्यान समाधि हो जाती है।’’
        त्रयमेकत्र संयम्।।
          ‘‘किसी एक विषय में तीनों का होना संयम् है।’’
           आमतौर से लोग धारणा, ध्यान और समाधि का अर्थ, ध्येय और लाभ नहीं समझते जबकि इनके बिना योग साधना में पूर्णता नहीं होती। धारणा से आशय यह है कि किसी एक वस्तु, विषय या व्यक्ति पर अपना चित्त स्थिर करना। यह क्रिया धारणा है। चित्त स्थिर होने के बाद जब वहां निरंतर बना रहता है उसे ध्यान कहा जाता है। इसके पश्चात जब चित्त वहां से हटकर शून्यता में आता है तब वह स्थिति समाधि की है। समाधि होने पर हम उस विषय, विचार, वस्तु और व्यक्ति के चिंत्तन से निवृत्त हो जाते हैं और उससे जब पुनः संपर्क होता है तो नवीनता का आभास होता है। इन क्रियाओं से हम अपने अंदर मानसिक संतापों से होने वाली होनी को खत्म कर सकते हैं। मान लीजिये किसी विषय, वस्तु या व्यक्ति को लेकर हमारे अंदर तनाव है और हम उससे निवृत्त होना चाहते हैं तो धारणा, ध्यान, और समाधि की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। संभव है कि वस्तु,, व्यक्ति और विषय से संबंधित समस्या का समाधाना त्वरित न हो पर उससे होने वाले संताप से होने वाली दैहिक तथा मानसिक हानि से तो बचा ही जा सकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com


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