ज़िंदगी के रास्ते
कहीं समतल हैं
कहीं टूटे हैं पुल
कहीं कीचड़ है
कभी धीमा चलना है
कभी तेज चलना है।
हम मंज़िल तय कर सकते हैं
हालतें तय करती हैं
हमारी सवारी का साधन
जहां हमने तय किया
जज़्बातों के सहारे चलने का
वहाँ हादसों का खतरा है,
सच यह है
इंसान के हाथ में कुछ नहीं है
सिवाय खुद को काबू रखने के,
बेकाबू लोगों को गड्ढों में गिरते हमने देखा है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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