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Saturday, September 14, 2013

आस्तीन के सांप-हिन्दी व्यंग्य कविता(asteen ke saanp-hindi vyangya kavita)

आस्तीनों में कभी सांप पलते नहीं देखे हैं,
शायद इंसानों की बही में दर्ज
अपनी कारनामों के ऐसे ही लेखे हैं,
जिनके लिये भले आदमी ने की दुआ
शिखर पर चढ़ने के लिये लिये
उसके कंधे पर पांव रखकर बढ़ गये,
उनके नाम के स्तंभ जमीन पर गढ़ गये,
इतना होता तो ठीक था
दुआ करने वालों ने कुछ पाया नहीं,
सिवाय वादों के कुछ उनके हिस्से में आया नहीं।
कहें दीपक बापू
क्यों परेशान हो
खजूर के पेड़ों से
खडे़ किये तुमने
क्षमा करो और भूल जाओ
बड़ा होना लिखा रहता है  उनकी किस्मत में
बांटने का बल आया नहीं,
इसलिये उनके  हिस्से में कभी
फल होता नहीं
साथ निभाती छाया नहीं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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