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Sunday, September 22, 2013

कातिल ही फरिश्ते बने-हिन्दी व्यंग्य कविता (Qatil bane farishey-hindi satire poem)




जंग के लिये जो अपने  घर में हथियार बनाते हैं,
बारूद का सामान बाज़ार में  लोगों को थमाते हैं।
दुनियां में उठाये हैं वही शांति का झंडा अपने हाथ
खून खराबा कहीं भी हो, आंसु बहाने चले आते हैं।
कहें दीपक बापू, सबसे ज्यादा कत्ल जिनके नाम
इंसानी हकों के समूह गीत वही दुनियां में गाते हैं।
पराये पसीने से भरे हैं जिन्होंने अपने सोने के भंडार
गरीबों के भले का नारे वही जोर से सुनाते हैं।
अपनी सोच किसको कब कहां और  कैसे सुनायें
चालाक सौदागरों के जाल में लोग खुद ही फंसे जाते हैं।
खरीद लिये हैं उन्होंने बड़े और छोटे रुपहले पर्दे
इसलिये कातिल ही फरिश्ते बनकर सामने आते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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