हमारे अध्यात्मिक दर्शन में
अनेक सिद्धांत पढ़ने में रुचिकर नहीं लगते पर जब वर्तमान प्रसंगों से जोड़कर उनका
अध्ययन किया जाये तो मन में हलचल मच ही जाती है।
इस समय देश में जो चुनावी राजनीतिक घटनाक्रम में चल रहा है उसमें कुछ नये
उभरे हुए व्यक्तित्वों का चरित्र कभी विलक्षण तो कभी विचित्र लगता है। कुछ वर्ष पूर्व सामाजिक नेता अन्ना हजारे ने
देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाया था। उनकी टीम के कुछ सदस्यों ने प्रचार
माध्यमों में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली और फिर अपना एक राजनीतिक दल बना लिया। अन्ना स्वयं कभी इस दल में शामिल नहीं हुए पर
उनकी छाया इस दल पर हमेशा रही। अब चूंकि
उनकी कुछ अनुयायियों ने अपनी छवि प्रचार माध्यमों में बना ली तो इस दल को दिल्ली
के विधानसभा चुनावों में अच्छी खासी सफलता भी मिली। उन्होंने अल्पमत में रहते सरकार बनायी और 49 दिन
बार उसे त्याग भी दिया।
हम यहां उनकी सरकार के कामकाज
का विश्लेक्षण नहीं कर रहे पर आगामी लोकसभा चुनावों में पूरे देश में छा जाने की
उनकी महात्वाकांक्षा देखकर आश्चर्य होता है। सबसे बड़ी बात यह कि आंदोलन के चलते
जिस तरह उन्होंने अपनी गतिविधियों से जनमानस में जो छवि बनायी वह अत्यंत रुचिकर
है। खास बात यह कि पुराने परंपरागत राजनीतिक दलों में उन्होंने जो हलचल मचायी वह
आश्चर्य चकित करती है।
विदुर नीति में कहा गया है कि
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प्राप्यापदं न व्यथते कदाचिदु द्योगमन्विच्छति चपमतः।
दुःख च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिताः
संपन्नाः।।
हिन्दू में
भावार्थ-जो मनुष्य विपत्ति
आने पर भी दुःखी नहीं होता बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय
पर दुःख सहता है वह जीवन में विजयी होता हैं।
चिकीर्पितं विप्रकृतं च वस्य नान्ये जनाः कर्म जानन्ति
किंचित्।
मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्योऽप्यस्य च्पवते
कश्चिदर्थः।।
हिन्दी में
भावार्थ-जिसके अपनी इच्छा के
अनुकूल और दूसरे के प्रतिकूल कार्य करने की योजना के बारे में जान भी नहीं पाते।
अपना मंत्र गुप्त रखने और इच्छित कार्य को अच्छी तरह संपन्न होने के कारण काम कभी
बिगड़ता नहीं है।
अन्ना भक्तों की राजनीतिक
चालों को कोई पूर्वानुमान नहीं कर पाता। सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली में अपनी
सरकार त्याग देने अपने प्रतिकूल जो वातावरण बना उसका प्रतिकार जिस तरह यह लोग कर
रहे हैं वह जनमानस में चर्चा का विषय तो बन ही रहा है और ऐसा लगता है कि कहीं न
कहीं वह भविष्य में भारतीय चुनावी राजनीतिक परिदृश्य में उनकी उल्लेखनीय भूमिका बन
ही जायेगी। यह सच है कि राजनीतिक, पत्रकारिता
और वकालत के क्षेत्र में कोई सदैव अपने स्थापित रहने का दावा नहीं कर सकता पर
लोकतंत्र में जिस व्यक्ति को प्रसिद्ध मिलती है उसे चुनाव के दौरान विजय प्राप्त
करने के अवसर भी मिल ही जाता है। अन्ना
भक्तों का यह दल चुनावों में कितना सफल
होगा यह अलग विषय है पर भारत में चुनावी राजनीतिक क्षेत्र में सामान्य लोगों के
सक्रिय होने के संकोच करते थे अब वह नहीं
रहा। कम से कम उन्होंने भारतीय जनमानस में सुप्तावस्था में पड़ी राजनीतिक चेतना का
संचार करने का श्रेय तो इनको जाता ही है।
उन्हें जिस तरह उन्होंनें
समाज जड़ हो चुकी चुनावी राजनीतिक संवेदना
को एक बार फिर संचारित वह पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। हम जैसे अध्यात्मिक लेखकों की आमतौर से
राजनीतिक विषयों पर कोई भूमिका नहीं होती पर जब किसी विषय का आचरण या विचार से
होता है कुछ देर उसके रुझान जरूर पैदा होता है।
दूसरी बात यह कि अध्यात्मिक रूप से संपन्न व्यक्ति ही अन्य कार्य भी कर
सकता है इसलिये राजनीतिक विषयों में सक्रिय व्यक्तियों के जब कुछ विशेष प्रयास
होता है तो उन पर इस देश का नागरिक होने के कारण ध्यान जाता ही है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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