धनहीन हो
मगर अज्ञानी न
हो
वरना चालाक लोग
खेलते
खिलौना मानकर।
सूरत से असुंदर
हो
पर वाणी का कठोर
न हो
वरना चेहरे पर
ताने कसेगा
हर कोई करेला
मानकर।
कहें दीपक
बापू शहर में
हजारों लोग बसते
हैं,
किसी के नखरे भी
होते महंगे
किसी के
आत्मसम्मान के दाम
एकदम सस्ते हैं,
अपनी शक्ति के
अनुसार
निद्रा में
देखें सपने,
जागते हुए स्वयं
की योग्यता के
पैमाने पर विचार
करें अपने,
कदम सोच समझकर
बढ़ाना
पीछे न हटने की
ठानकर।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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