हर कल जो बीत गया उस पर हमारा बस नहीं था। कल जो होने वाला है उस पर भी
हमारा बस नहीं होगा। मगर जो चल रहा है उसे हम भोग रहे हैं। प्रकृत्ति ने हमें हाथ
पांव, आंखें, कान, नाक और बृद्धि दी है इसलिये वर्तमान स्थिति से ही जूझ सकते हैं। जो दृश्य बीत गया वह हमारी इच्छा से सामने नहीं
आया था जो कल आयेगा उसका आभास भी हमें नहीं है पर वर्तमान में जो दृश्य है उसी पर
हम विश्लेषण कर सकते हैं। अनेक लोग बीते कल के दुःख और आने वाले दिन की चिंता में
नष्ट करते हैं परिणाम यह होता है कि वर्तमान उनके लिये भूत बनकर संकट बनता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि-----------गते शोक न कर्त्तव्यो भविष्यं नैव चित्नयेत्।वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।।हिन्दी में भावार्थ-बीती हुई घटना का शोक नहीं करना चाहिए। भविष्य की चिन्ता भी नहीं करनी चाहिए। बुद्धिमान लोग वर्तमान काल के अनुसार कार्य करते हैं।
मनुष्य के पास बहुत बुद्धि यह उसका गुण है पर वह इसके उपयोग का वैज्ञानिक
तरीका नहीं जानता यह उसका दुर्गुण
है। मनुष्य की इंद्रिया बाहर केंद्रित
रहने के कारण दृष्यव्य तत्वों से प्रभावित होती है। उसमें अंतर्मन की शक्ति का
ज्ञान नहीं रह जाता। इसका एक मात्र उपाय
है कि योग साधना के माध्यम से अपनी देह, मन, बुद्धि तथा विचारों का शुद्धिकरण किया जाये। अनेक लोग योग साधना को केवल दैहिक शुद्धि का
माध्यम समझते हैं पर अनुभवी साधक जानते हैं कि इससे न केवल आंतरिक विकार नष्ट होते
हैं वरन् समस्त इंद्रिया बाहर प्रभावी होकर सक्रिय होती है। जो इंद्रिया बाह्य वातावरण से प्रभाव होकर काम
करती हैं योग साधना के अभ्यास से वह शक्तिशाली होने के बाद हर तरह के वातावरण को
अपने अनुकूल बनाती हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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